गणगौर - गौरी व्रत | Gauri Pooja Vidhi - Gauri Vrat (Gauri Tritiya) Parvati Poojan | Maa Ambe Gauri - Parvati Fast Story
गौरी उत्सव सौभाग्यशाली स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. धर्मशास्त्रों में इसे गौरी उत्सव, गौरी तृ्तिया, ईश्वर गौरी आदि नामों से जाना जाता है. इस व्रत को मनाने के विधि-विधान व फल निम्न है. वर्ष 2011 में यह व्रत 6 अप्रैल कोचैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तीया को यह पर्व मनाया जायेगा (In 2006, Maa Gauri Fast will be observed on 6th April, the 3rd day of Shukla Paksha, Chaitra Month). इस दिन मत्यस्य जयंती भी होने के कारण इस दिन की शुभता में वृ्द्धि हो रही है.
गणगौर पूजा मनाने का विधि-विधान | Gauri Pooja Method
सामान्यत: इस पर्व को तीज के दिन मनाया जाता है (Generally this fast is observed on the day of Teej festival). इस व्रत को करने के लिए इस दिन प्रात:काल में सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. प्रतिदिन की नित्यक्रियाओं से निवृ्त होने के बाद, साफ-सुन्दर वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद सारे घर में शुद्ध जल छिडकर, घर को शुद्ध करना चाहिए. घर के एक शुद्ध और एकान्त स्थान में पवित्र मिट्टी से 24 अंगूल चौडी और 24 अंगूल लम्बी अर्थात चौकोर वेदी बनाकर, केसर चन्दन तथा कपूर से उस पर चौक पूरा जाता है. और बीच में सोने,चांदी की मूर्ति की स्थापना करके उसे फूलों से, फलों से, दूब से और रोली आदि से उसका पूजन किया जाता है. पूजन में मां गौरी के दस रुपों की पूजा की जाती है.
मां गौरी के दस रुप | Incarnations of Parvati - Names of Parvati
1. गौरी 2. उमा 3. लतिका 4. सुभागा 5. भगमालिनी 6. मनोकामना 7. भवानी 8. कामदा 9. भोग वर्द्विनी और 10 अम्बिका.
सभी रुपों की पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा करनी चाहिए. इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को दिन में केवल एक बार ही दूध पीकर इस व्रत को करना चाहिए. इस व्रत को करने से उपवासक के घर में संतान, सुख और समृ्द्धि की वृ्द्धि होती है.
इस व्रत में लकडी की बनी हुई अथवा किसी धातु की बनी हुई शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्नान कराने का विधि-विधान है. देवी-देवताओं को सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है. इसके बाद उनका श्रद्वा भक्ति से गंध पुष्पादि से पूजन किया जाता है. देवी-देवताओं को झूले में अथवा सिंहासन में झुलाने का भी विधि-विधान है.
गणगौर व्रत कथा | Gauri Vrat Story
एक बार महादेव पार्वती वन में गयें. चलते-चलते गहरे वन में पहुंच गयें, तो पार्वती जी ने कहा-भगवान, मुझे प्यास लगी है. महादेव ने कहा, देवी देखों उस तरफ पक्षी उड रहे है. वहां जरूर ही पानी होगा. पार्वती वहां गई. वहां एक नदी बह रही थी. पार्वती ने पानी की अंजली भरी तो दुब का गुच्छा आया, और दूसरी बार अंजली भरी तो टेसू के फूल, तीसरी बार अंजली भरने पर ढोकला नामक फल आया.
इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया. महादेव जी ने बताया कि, आज चैत्र माह की तीज है. सारी महिलायें, अपने सुहाग के लिये " गौरी उत्सव" करती है. गौरी जौ को चढाए हुए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे है. पार्वती जी ने महादेव जी से विनती की, कि हे स्वामी, दो दिन के लिये, आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें, जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौरी के व्रत उत्सव को करें, और मैं खुद ही उनको सुहाग बढाने वाला आशिर्वाद दूं.
महादेव जी ने अपनी शक्ति से ऎसा ही किया. थोडी देर में स्त्रियों का झुण्ड आया तो पार्वती जी को चिन्ता हुई, और महादेव जी के पास जाकर कहने लगी. प्रभु, में तो पहले ही वरदान दे चुकी, अब आप दया करके इन स्त्रियों को अपनी तरफ से सौभाग्य का वरदान दें, पार्वती के कहने से महादेव जी ने उन्हें, सौभाग्य का वरदान दिया.