आमलकी एकादशी | Amalaki Ekadasi | Amalaki Ekadasi Vrat Katha | How to observe Amalaki Ekadashi Fast in Hindi
आमलकी एकादशी व्रत शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है. इस व्रत में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधि-विधान है. इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है.
सौ गायों को दान में देने के उपरान्त जो फल प्राप्त होता है. वही फल आमलकी एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है. इस व्रत में आंवले के पेड का पूजन किया जाता है. आंवले के वृ्क्ष के विषय में यह मत है, कि इसकी उत्पति भगवान श्री विष्णु के मुख से हुई है. एकादशी तिथि में विशेष रुप से श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है. आंवले के पेड की उत्पति को लेकर एक कथा प्रचलित है.
विष्णु जी के मुख से आंवले की उत्पति कैसे हुई? | Origin of Amla from Mouth of Lord Vishnu
विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के थूकने के फलस्वरुप उनके मुख से चन्दमा का जैसा एक बिन्दू प्रकट होकर पृ्थ्वी पर गिरा. उसी बिन्दू से आमलक अर्थात आंवले के महान पेड की उत्पति हुई. यही कारण है कि विष्णु पूजा में इस फल का प्रयोग किया जाता है. श्रीविष्णु के श्री मुख से प्रकट होने वाले आंवले के वृ्क्ष को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है. इस फल के महत्व के विषय में कहा गया है, कि इस फल के स्मरणमात्र से गऊ दान करने के समान फल प्राप्त होता हे. यह फल भगवान विष्णु जी को अत्यधिक प्रिय है. इस फल को खाने से तीन गुणा शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
आमलकी एकादशी व्रत कथा | Amalaki Ekadasi Vrat Katha
एक बार एक नगर था. इस नगर में सभी वर्गों के लोग मिलकर आनन्द पूर्वक रह्ते थें. लोगों का आपस में प्रेम होने के कारण धर्म और आस्था का निवास भी नगर में बना हुआ था. यह नगर चन्द्रवंशी नामक राजा के राज्य के अन्तर्गत आता था. उस राज्य में सभी सुखी थे, उस राज्य में विशेष रुप से श्री विष्णु जी की पूजा होती थी. और एकदशी व्रत करने की प्रथा उस नगर में प्राचीन समय से चली आ रही थी. राजा और प्रजा दोनों मिलकर एकादशी व्रत कुम्भ स्थापना करते थे. कुम्भ स्थापना के बाद धूप, दीप, नैवेद्य, पंचरत्न आदि से पूजा की जाती थी. एक बार एकादशी व्रत करने के समय सभी जन मंदिर में जागरण कर रहे थे. रात्रि के समय एक शिकारी आया जो भूखा था, और वह लगभग सभी पापों का भागी था. मंदिर में अधिक लोग होने के कारण शिकारी को भोजन चुराने का अवसर न मिल सका और उस शिकारी को वह रात्रि जागरण करते हुए बितानी पडी. प्रात:काल होने पर सब जन अपने घर चले गए. और शिकारी भी अपने घर चला गया. कुछ समय बीतने के बाद शिकारी कि किसी कारणवश मृ्त्यु हो गई. उस शिकारी ने अनजाने में ही सही क्योकि आमलकी एकादशी व्रत किया था, इस वजह से उसे पुन्य प्राप्त हुआ, और उसका जन्म एक राजा के यहां हुआ. वह बहुत वीर, धार्मिक, सत्यवादी और विष्णु भक्त था. दान कार्यो में उसकी रुचि थी. एक बार वह शिकार को गया और डाकूओं के चंगुल में फंस गया. डाकू उसे मारने के लिए शस्त्र का प्रहार करने लगे. राजा ने देखा की डाकूओं के प्रहार का उस पर कोई असर नहीं हो रहा है. और कुछ ऎसा हुआ की डाकूओं के शस्त्र स्वंय डाकूओं पर ही वार करने लगे. उस समय एक शक्ति प्रकट हुई, और उस शक्ति ने सभी डाकूओं को मृ्त्यु लोक पहुंचा दिया. राजा ने पूछा की इस प्रकार मेरी रक्षा करने वाला कौन है.? इसके जवाब में भविष्यवाणी हुई की तेरी रक्षा श्री विष्णु जी कर रहे है. यह कृ्पा आपके आमलकी एकादशी व्रत करने के प्रभावस्वरुप हुई है. इस व्रत को करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.