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अपना असली चेहरा

 

जापान में झेन फकीर के पास जब कोई साधक जाता है और उससे पूछता है कि मैं क्या साधना करूं? तो वह कहता है कि तू यह साधना कर, अपना असली चेहरा, जो जन्म के पहले तेरा चेहरा था, उसको खोजकर आ।

जन्म के पहले कहीं कोई चेहरा होता है! अब कोई आपसे कहने लगे, मरने के बाद जो आपकी शक्ल होगी, उसको खोजकर लाइए। कोई आपसे कहे कि जन्म के पहले जो आपकी शकल थी, वह खोजकर लाइए।

वे झेन फकीर ठीक कहते हैं। वे वही कहते हैं, जो कृष्ण कह रहे हैं। वे यह कहते हैं, उसका पता लगाओ, जो तुममें कभी जन्मा नहीं था। अगर ऐसे किसी सूत्र को तुम खोज सकते हो, जो जन्म के पहले भी था, तो विश्वास रखो फिर कि वह मृत्यु के बाद भी होगा। जो जन्म के पहले था, उसे मृत्यु नहीं पोंछ सकेगी। जो जन्म के पहले था, वह मृत्यु के बाद भी होगा। और जो जन्म के बाद ही हुआ है, वह मृत्यु के पहले तक ही साथी हो सकता है, उसके आगे साथी नहीं हो सकता है।

कृष्ण जब कह रहे हैं कि कोई है अजन्मा, नहीं जन्मता, नहीं मरता, जिसे शस्त्रों से छेदा नहीं जा सकता...।

आपको, मुझे छेदा जा सकता है। इसलिए ध्यान रखना, जिसे छेदा जा सकता है, कृष्ण उसके संबंध में बात नहीं कर रहे हैं। वे कहते हैं कि जिसे छेदा नहीं जा सकता शस्त्रों से, आग में जलाया नहीं जा सकता, पानी में डुबाया नहीं जा सकता।

हमें तो छेदा जा सकता है; कोई कठिनाई नहीं है छेदे जाने में। आग में जलाए जाने में कोई कठिनाई नहीं है। पानी में डुबाए जाने में कोई कठिनाई नहीं है।

तो जो पानी में डुबाया जा सकता, आग में जलाया जा सकता, शस्त्रों से छेदा जा सकता, उसकी यह चर्चा नहीं है। जिसके ऊपर सर्जन कुछ कर सकता है, उसकी यह चर्चा नहीं है। जिसके लिए डाक्टर कुछ कर सकता है, उसकी यह चर्चा नहीं है। डाक्टर जिससे उलझा है, वह मर्त्य है। और सर्जन जिस पर काम कर रहा है, वह मरणधर्मा है। विज्ञान की प्रयोगशाला में जिस पर खोज-बीन हो रही है, वह मरणधर्मा है। इससे उसका कोई लेना-देना नहीं है।

इसलिए अगर वैज्ञानिक सोचता हो कि अपनी प्रयोगशाला की टेबल पर किसी दिन वह कृष्ण के अजात को, अजन्मे को, अमृत को पकड़ लेगा, तो भूल में पड़ा है। वह कभी पकड़ नहीं पाएगा। उसके सब सूक्ष्मतम औजार उसको ही पकड़ पाएंगे, जो छेदा जा सकता है। लेकिन जो नहीं छेदा जा सकता, अगर वह दिखाई पड़ जाए...वह दिखाई पड़ सकता है।

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