जिस प्रकार मनुष्य जीर्ण-शीर्ण पुराने कपडों को त्याग कर नये वस्त्र धारण कर लेता है उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर को छोडकर नया शरीर धारण कर लेती है।
पुराना शरीर होने पर ही आत्मा नया शरीर धारण करती है तो फिर बच्चे क्यों मर जाते हैं? इसका अर्थ है कि मनुष्य का शरीर संस्कारों पर आधारित है जब संस्कार शीर्ण हो जाते हैं और शरीर पुराना व कमजोर हो जाता है तो आत्मा उस शरीर को छोड देती है। उन्होंने कहा कि यदि संस्कार दो दिन के हैं तो दो दिन बाद ही शरीर शीर्ण हो जाता है और इसके बाद मनुष्य एक सांस भी नहीं ले सकता अर्थात उसकी मृत्यु हो जाती है।
संस्कार ही शरीर है और आत्मा संस्कारों के अनुसार ही नया शरीर धारण करती है तथा संस्कारों के शीर्ण होने पर उस शरीर को छोड देती है। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर मनुष्य निश्चय ही संकल्प मय प्राणी होता है। इस लोक में मनुष्य जितना संकल्प वाला होता है उतना अन्य कोई प्राणी नहीं होता। उन्होंने कहा कि मनुष्य जैसा यहां होता है वैसा ही यहां से मरकर जाने के बाद होता है। वह अपने संकल्प से बनाये हुये शरीरों में ही उत्पन्न होता है इसलिए मृत्यु शरीर का केवल परिवर्तन ही है, लेकिन आत्मा सदैव जिंदा रहती है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश में भी यही कहा है कि आत्मा को न तो शस्त्र काट सकते हैं, न ही अग्नि जला सकती है, न इसे पानी गला सकता है और न ही वायु इसे सुखा सकती है। उन्होंने कहा कि आत्मा को आकाश अपने में सम्माहितनहीं कर सकता। यह नि:संदेह अशोष्य,सर्वव्यापक, अचल स्थित रहने वाली और सनातन है। हमें अपने संस्कारों को कभी भी जीर्ण नहीं होने देनी चाहिए क्योंकि संस्कार विहीन होने पर तो पूरे के पूरे समाज नष्ट हो जाते हैं फिर मनुष्य की तो भला बात ही क्या है।