मानव जीवन तभी अनंत बन सकता है जब उसके सामने कोई अच्छा आदर्श हो। बिना आदर्श के अपने आप बिरले ही ऊंचा जीवन प्राप्त कर सकते हैं। स्थिर, निश्चय कर्मण्यताव आदर्श तीनों मिलकर ही मनुष्य को देवता बना सकते हैं।
असत्य, अधर्म के प्रति युद्ध करते हुए उसके निराकरण में हम जिस सीमा तक पहुंच पाते हैं उसी सीमा तक हम मानव परमात्मा को अपने जीवन में उतार पाते हैं। सही दिशा में उ ाया हर कदम कल्याणकारी होगा। हमें अपना जीवन मां, आत्मा, संत-महात्मा व शास्त्रों के मत के अनुकूल ही बनाना चाहिए। माता-पिता बडे बुजुर्ग संत, महापुरुषों, तीर्थस्थलोंव देश की संस्कृति का सम्मान करें।