ईश्वर की सृष्टि में कभी अन्याय नहीं होता। कई बार लगता है जो सच्चा है, ईमानदार है वह कष्ट भोग रहा है और जो बेईमान है वह सुख भोग रहा है। सही मायने में सच्चा व ईमानदार बाहर से कष्ट भोगता हुआ दिखता है, लेकिन अंदर से वह सुखी है। बेईमान बाहर से सुख भोगता दिखता है, लेकिन अंदर से वह बहुत दुखी है। सत्संग के अभाव में मानव ईश्वर के खेल को नहीं समझ पाता। सत्संग जीवन का अमृत है। सत्संग से सारे विकार दूर हो जाते हैं। प्रभु के नजदीक पहुंचने का एक मात्र माध्यम सत्संग है।
जो दूसरे को यश दे वह है यशोदा। जो प्रत्येक मनुष्य के चित्त को आकर्षित कर रहे वह हैं श्रीकृष्ण। भगवान का सत्संग राग- द्वैष मिटाता है। अपने को कभी दीन-हीन न माने।