जिस प्रकार शक्ति के अभाव में शिव भी शव के समान हो जाते हैं, उसी तरह कर्म के अभाव में मनुष्य भी निष्क्रिय बन जाता है। यह संपूर्ण विश्व कर्म से बंधा हुआ है और कर्म के द्वारा संचालित हो रहा है। इसलिए कर्म-संसार में कर्म से बचकर न रहें बल्कि सर्वदा कर्मशील बने रहें। याद रखें कर्म से सत्य, संतोष और सफलता मिलती है। कर्म से शारीरिक और मानसिक श्रम का योग होता है। यह योग हमारी आंतरिक शक्ति को सदैव जाग्रत रखता है। हम समाज और अपने स्वयं के प्रति जागरूक बने रहते हैं।
एक बात और कि प्रभु में विश्वास रखिए। सबसे प्रेम करना सीखिए। अलौकिक शक्तियां बाहर से नहीं आतीं। यह तो ईश्वरभक्ति द्वारा मन में स्वत: उत्पन्न होती हैं। आवश्यकता है कि आप इस शक्ति को भली-भांति पहचानें।
मन में संसार के प्रति कल्याण का भाव आते ही आपका संपूर्ण जीवन बदल जाएगा। जैसे-जैसे यह कर्म-शक्ति विकसित होती जाएगी, वैसे-वैसे आप शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त होकर प्रभु प्रेम की परंपराओं से परिचित होते जाएंगे। मन में फालतू बातें आना बंद हो जाएंगी और आप सदैव कल्याणकारी और सकारात्मक कार्यो के प्रति जागरूक होते जाएंगे। कार्य करते समय सर्वदा स्थिर और शांत रहें, मन को लक्ष्य की ओर साधते रहें। अधैर्य नुकसानदेह है, जिसके कारण सही काम भी बिगड़ जाते हैं।
धैर्य से आशा, विश्वास और शक्ति बढ़ती है। किसी भी रचनात्मक कार्य को आरंभ करने से पूर्व उस पर संपूर्ण रूप से विचार कीजिए। सही नियोजन और सही तैयारी करें। कार्य शुरू करने पर दूरदृष्टि बनाए रखें और उसके परिणाम का आकलन करते रहें। कहीं असफलता मिलती है या कार्य में कुछ बाधा आती है, तो इससे विचलित नहीं होना है बल्कि धैर्यपूर्वक उसकी समीक्षा करें। धैर्य से ही सही समय पर सही काम होता है।
धैर्य हमारे दृष्टिकोण को केंद्रित रखता है और उसे बिखरने नहीं देता। इसलिए मन की संकल्प शक्ति का निरंतर विस्तार करना चाहिए। इससे अधैर्य नष्ट होता है और कार्य संपन्न करने की सही दिशा मिलती है। मन की शक्ति की पहचान होती है। इससे संकल्प शक्ति बढ़ती है और जीवन संघर्ष में भाग लेने की ताकत प्राप्त होती है। मन को सदैव वश में रखें। यह बड़ा चंचल है। स्वस्थ मन और तन के लिए भी व्यायाम जरूरी है। नित्य सुबह-शाम खुली हवा में टहलिए।