भगवान माता सीता के साथ अयोध्या पहुंचते हैं तो नगर में चारों ओर खुशियां बरसने लगती हैं। सुख-समृद्धि की बरसा से पूरी अयोध्या मगन है। भगवान सोच में पड जाते हैं कि कहीं यह बरसा लोगों को राम से काम की ओर न ले जाए। धन जब भोग का साधन बनता है तो विनाश की ओर ले जाता है और जब यही धन धर्म में लगाया जाता है तो विकास का मार्ग खुद-ब-खुद प्रशस्त हो जाता है।
चारों ओर खुशियां ही खुशियां हैं लेकिन भगवान के मन में इन खुशियों को लेकर विचार चल रहा है। महाराज दशरथ ज्यों दरबार में पहुंचे तो लोगों ने जय-जयकार शुरू कर दी। उनके मन में विचार आया कि अब राम को गद्दी सौंपने का समय आ गया है। वह गुरु वशिष् के पास पहुंचे और अपनी बात कह सुनाई। सुविचार मन में बहुत कम आते हैं और इनकी उम्र भी बेहद कम होती है, जबकि कुविचार जल्दी-जल्दी आते हैं। दशरथ राजतिलक के लिए दूसरे दिन का समय देकर चले आए। इसकी जानकारी अयोध्या में होते ही नगरवासी खुशियां मनाने लगे।
इधर राजतिलक की बात देवताओं को अच्छी नहीं लगी। आनन-फानन में माता सरस्वती को बुला कर इसमें विघ्न डालने की व्यवस्था बनाने की बात कही। हालांकि, पहले सरस्वती ने इससे मना किया मगर राम का वनवास लोक कल्याणकारी है, की बात समझ वे अयोध्या पहुंचीं और मंथरा की जुबान पर बै गईं।
राम के राजतिलक को लेकर कैकेयी के लिए ीक न बताकर मंथरा ने उन्हें दिग्भ्रमित कर दिया और वे भरत को राजगद्दी सौंपे जाने के लिए कोप भवन में चली गईं। इधर महाराज दशरथ जब कैकेयी के पास पहुंचे तो महल के दरवाजे पर मंथरा को बै ा पाया। उन्होंने मंथरा से पूछा कि महारानी कहां हैं? मंथरा से सारी बात सुनकर महाराज कोप भवन पहुंचे।
मनुष्य जब राम के बजाय काम की ओर जाएगा तो उसका पतन निश्चित है। दशरथ ने यही किया वे कैकेयी के पास पहुंच कर उसे मनाने लगे। उन्होंने सोचा की कैकेयी राम के राजतिलक के अवसर पर कुछ मांग रही होगी तो उन्होंने कहा कि मांगो क्या चाहिए। कैकेयी बोली कि महाराज मुझे वचन दीजिए की जो मांग होगी वह आपको पूरी करनी होगी।
कैकेयी के वचन सुनते ही महाराज दशरथ ने कहा, रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई पर वचन न जाय राम की कसम जो मांगों वो हर्ष से देने का वचन दिया। श्रीराम की कसम खाते ही कैकेयी ने महाराज जी से राम के बदले भरत का राजतिलक कर गद्दी पर बै ाने को कहा तो दशरथ मान गए, लेकिन दूसरी मांग करते ही महाराज के पैरों तले जमीन खिसक गई। कैकेयी ने दूसरी मांग में राम को 14 वर्ष का वनवास मांगा। राम के वनवास की बात सुनते ही दशरथ हे राम! हे राम! कहते हुए कैकेयी से दूसरी मांग को वापस लेने के लिए कहा लेकिन कैकेयी अपनी जिद्द पर अडी रही।
कैकेयी ने कुसंग का साथ पकड लिया था इसलिए उसकी मति मारी गई थी। और बाद में उसको कष्ट झेलना पडा। यदि मनुष्य भी कुसंग का साथ पकडता है तो उसको भी विपत्तियां झेलनी पडती हैं।