तीनो तरफ से ऊँचे ऊँचे पहाड़ो से घिरा केदारनाथ बड़े ही दुर्गम जगह पर स्तिथ है | यात्रा बहूत ही कठिन भरी है | ऐसे विशाल मंदिर का यहा पर इतने भव्यशाली रूप में निर्माण भक्तो को विस्मय में डाल देता है | इस मंदिर के दक्षिण हिस्से को मन्दाकिनी नदी का पानी छूके निकलता है |
केदारनाथ शिवलिंग की स्थापना की कथा :
शिवमहापुराण के अनुसार युगों युगों पूर्व भगवान् विष्णु के दो अवतार नर और नारायण ने इसी जगह भगवान् शिव की आराधना के लिए एक पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कर शास्त्र अनुसार पूर्ण निष्ठा से पूजा अर्चना की | उन्ही के प्रभाव से यह भूमि पावन हो गयी | उनके कई सालो की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान् शिव शंकर ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा |
नर नारायण के मन में सिर्फ शिवजी के दर्शन की अभिलाषा ही थी , फिर भी उन्होंने जन कल्याण के लिए शिवजी को इसी शिवलिंग में हमेशा के लिए वास करने का वरदान माँगा | भोले ने खुश होकर इस ज्योतिर्लिंग में भी वास कर लिया |
इस शिवलिंग के दर्शन से मनुष्य के सभी भय और दुखो का नाश हो जाता है , वह परम सुख पाता है और अंत में शिवपद में समा जाता है |
केदारनाथ और पांडवो से जुडी कथा – पंचकेदार की कहानी :
जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तब पांडवो ने बहूत भारी नरसंहार और उनके द्वारा किये गये अपनों की ही मृत्यु का शोक उन्हें बैचैन कर रहा था | वे इस भारी पाप के साथ जी नहीं पा रहे थे | कुछ साधुओ ने उन्हें यह भी बताया की उनपे आत्मकुल-नाश और गोत्र-हत्या का पाप चढ़ा हुआ है | यह बात जानकर वे ऋषि वेदव्यास से मुक्ति पाने और इस पाप के प्रभाव से दूर होने हेतु उपाय पूछने लगे |
वेदव्यास जी केदारघाटी में शिव आराधना को ही इसका उपाय बताया | उन्होंने कहा की भगवान् केदारनाथ के दर्शन से ही तुम इस पाप से मुक्त हो सकते हो |
यह सुनकर सभी पाण्डव दर्शन हेतु रवाना हो गये | सबसे पहले वो श्री विश्वनाथ भोलेनाथ का दर्शन करने गये पर शिव उनसे नाराज थे इसलिए उन्हें वहा दर्शन का सुख नही मिला | इसके बाद वो केदारघाटी के लिए रवाना हो गये | जब शिवजी ने उन्हें वहा आते देखा तो नाराज शिव फिर से गुप्तकाशी में जाकर अन्तर्धान हो गये |
कुछ समय बीतने के बाद शंकर ने एक भैंसे का रूप धारण किया और उन सभी की परीक्षा लेने के लिए एक दलदल में धँसने लगे | यह देखकर महाबली भीम से उसकी पुंछ पकड़ कर उन्हें दलदल में धँसने से बचाया | इसी बीच सभी करुणामई वंदना करके शिव ध्यान में व्यस्त हो गये | भोले से अब अपने भक्तो का यह दुःख देखा नहीं जा रहा था | अत: उन्होंने उसी भेंसे के पीठ से उन्हें दर्शन दिए और वही पर स्तिथ हो गये |
पांडवो से हर्ष पूर्ण पूजा अर्चना की और अपने पापो के नाश के लिए केदारनाथ से विनती की | शिवजी ने उनके सभी दोष समाप्त कर दिए |
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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