उन लोगों के लिए भगवान एक अबूझ पहेली होते हैं, जो पुस्तक पढ़कर भगवान को जानने का प्रयास करते हैं। कोई भी सांसारिक व्यक्ति नहीं बता सकता कि ईश्वर क्या है? उसके सामने भगवान को जानने की समस्या हमेशा बनी रहती है।
ईश्वर को जानने के लिए ईश्वर में लीन होना बहुत जरूरी है। जो इंसान लोभ, माया, लालच, अहं को छोड़कर ईश्वर ध्यान में लीन हो जाता है वहीं सही मायने में भगवान को जान सकता है। ईश्वर आराधना ही भगवान तक पहुँचने की सीढ़ी है, जो आपके लिए स्वर्ग के द्वार खोल देती है।
जो लोग भ्रम पाल कर रखते हैं कि वेदों को पढ़ने से भगवान मिल जाएँगे। उन्हें इस मिथ्या भ्रम से बाहर निकलना होगा, क्योंकि वेदों में लिखी गई उनसे जु़ड़ी बातों को पढ़ने से प्रभु को पाने का रास्ता नहीं मिलता है। वेद पढ़ने से अगर ज्ञान होता और ईश्वर के मिलने का रास्ता बनता तो हर कोई ईश्वर के करीब होता। इसलिए हर मनुष्य को ईश्वर आराधना में लीन होकर भगवान का ध्यान करना चाहिए।
इस दुनिया में भगवान अलौकिक है और ज्ञान लौकिक। इस कारण इन्द्रिय, मन और बुद्धि से भक्त लाख जतन करने के बाद भी उन्हे नहीं जान सकता। वह संतों के बताए रास्ते पर चलने से भी भक्त को नहीं मिलते हैं। भगवान तो सच्ची साधना से ही मिलते है।
भगवान ने स्वयं कहा है कि इंद्रिय, मन और बुद्धि से वे परे हैं। उनका चिंतन और मनन नहीं किया जा सकता है। अगर चिंतन करने से वे मिलते तो अब तक भक्तों को उनका दिव्य दर्शन हो जाता।
मनुष्य इस शरीर को सत्संग करके सार्थक बना लेता है, वहीं कुसंग करके उसे कुरुक्षेत्र बना सकता है, लेकिन भगवान अच्छाई का साथ देते हैं। उनके साथ की जरूरत सज्जन और दुर्जन दोनों को भी है, इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह जो भी कर्म करता है, उसे भगवान को समर्पित कर दे।
जैसे मंदिर में शंख के पानी का छिड़काव करने का महत्व होता है। वह पानी जिसके ऊपर पड़ जाता है, उसे कई जन्मों के पाप से मुक्ति मिल जाती है। उसी प्रकार सच्ची आराधना और ध्यान से ही ईश्वर को प्राप्त कर अपने पापों से मुक्ति मिल सकती है।