यह टॉपिक हीं बड़ा विचित्र लगता है। कौन बेहतर रावण की दुर्योधन? यदि राम और कृष्ण की बात की जाय, यदि गांधी और बुद्ध की बात की जाय . समझ में आती है . पर ये क्या की कौन बेहतर रावण की दुर्योधन ? ये भी भला कोई बात हुई .
हिटलर और मुसोलिनी में बेहतर कौन ?
चंगेज खान और मोहम्मद गजनी में बेहतर कौन ?
कंस और हिरण्य कश्यपु में बेहतर कौन ?
थोड़ा अटपटा लगता है . पर मैं सोचता हूँ अगर नायकों की तुलना की जा सकती है , तो क्या खलनायकों की तुलना क्यों नहीं की जा सकती ?
एक कहानी में नायक का उतना ही महत्त्व है जितना की खलनायक का . बिना रावण के राम जिस रूप में आज जाने जाते है , वैसे नहीं जाने जाते . बिना दुर्योधन के महाभारत नहीं होता , बिना महाभारत के गीता नहीं होती और गीता के बिना कृष्ण अधूरे है .
बुराई में रावण की का कोई मुकाबला नहीं . तो दुर्योधन भी काम अहंकारी नहीं . दोनों के जीवन में काफी समानता है . रावण भी स्त्री की मर्यादा का हनन करता है , दुर्योधन भी . रावण सीता का अपहरण करता है , तो दुर्योधन द्रोपदी को निर्वस्त्र करने की . रावण भी अपने शत्रु को स्वयं के अहंकार में छोटा मानता है , तो दुर्योधन भी . रावण भी बाली के हाथों चोट खता है तो दुर्योधन भी चित्रसेन नामक गन्धर्व से हार जाता है . रावण के अहंकार पर बाली चोट पहुंचता है तो चित्रसेन नामक गन्धर्व से चोट खाकर मौत के कगार पर दुर्योधन भी पहुँच जाता है .रावण से पास भी मेधनाद , कुम्भकरण जैसे पुत्र और भाई है , तो दुर्योधन के पास भी अंगराज कर्ण है . युद्ध से पहले राम भी अंगद को संधि सन्देश के लिए भेजते है , तो कृष्ण स्वयं ही महाभारत से पहले शांति दूत बनकर दुर्योधन के पास जाते है , पर अहंकार वश रावण और दुर्योधन दोनों की शांति का प्रस्ताव ठुकरा देते है . रावण और दुर्योधन के अधार्मिक कर्मो से तंग आकर दोनों हीं के सम्बन्धी युद्ध से पहले साथ छोड़ देते है . रावण का भाई विभीषण साथ छोड़कर राम से मिल जाते है , तो दुर्योधन का भाई युयुत्सु भी महाभारत शुरू होने से पहले पांडवों से मिल जाता है .
काफी सारी समानताएं होते हुए भी रावण और दुर्योधन में काफी सारी विषमताएं भी है जो दोनों को एक दूसरे से अलग सिद्ध करती है
रावण योद्धा है . अपनी सीमाएं जानते हुए भी जाकर बालि से अकेले ही भीड़ जाता है . दुर्योधन की तरह छल नहीं करता. याद कीजिए अभिमन्यु को मारने के लिए क्या क्या उपाय करता है . बल में रावण और दुर्योधन का मुकाबला नहीं . रावण लड़ाई में हनुमानजी पर भी कभी कभी भारी पड़ता है . रावण को हराने के लिए स्वयं राम जी को जाना पड़ता है . इधर दुर्योधन के सामने फीका पद जाता है . याद कीजिए ये वो ही भीम है जो बूढ़े हनुमान जी की पूंछ भी नहीं हिला पाते हैं . ताकत के मामले में दुर्योधन रावण के सामने कहाँ टिकता है , इसका अनुमान आप लगा सकते हैं .
अब स्त्रियों के प्रति सम्मान की बात करते हैं. चलिए ये मान लिया की रावण ने दुष्कर्म किया , माता सीता का हरण किया . पर वो भी किस लिए. जब उसकी बहन श्रूपनखाँ का अपमान किया जाता है , उसकी बहन श्रुपनखा के नाक काट लिए जाते हैं , तो उस बहन की अपमान का बदला लेने के लिए रावण माता सीता का अपहरण करता है . एक बात ये भी है रावण ने माता सीता को अशोक वाटिका में रखा जरूर , डराया भी , धमकाया भी , पर अनुचित व्यवहार कभी नहीं किया .
दुर्योधन के मन में स्त्रियों के प्रति कोई मान नहीं , कोई सम्मान नहीं . यहां तक की भरे दरबार में सबके सामने अपनी भाभी द्रौपदी को नग्न करने की चेष्टा से भी नहीं चुकता . इस तरह व्यवहार रखता है दुर्योधन .
बदले की भावना से रावण भी पीड़ित है , दुर्योधन भी , अहंकार से रावण भी पीड़ित है दुर्योधन भी. पर बदले की भावना से पीड़ित होकर रावण एक्सट्रीम पर नहीं जाता है , पर दुर्योधन हर तरह की सीमाएं लाँघ जाता है .
ये सारी बातें लिख रहा हूँ इसका अर्थ ये नहीं की मैं रावण का समर्थक हूँ. रावण किसी भी तरह से अनुकरणीय नहीं है . अगर दुर्योधन जैसा पात्र इस तरह से व्यव्हार करता है तो इसके भी कारण है . बचपन से ही दुर्योधन अपने पिता के प्रति हुए अन्याय को देखता चला आ रहा है . उसकी जलन की अग्नि में घी डालने का काम उसका मामा शकुनि हमेशा करता आ रहा है , जबकि रावण को अनुचित काम करने पे रोकने वाली पत्नी मंदोदरी हमेशा साथ रहती है . रावण भी अपने भाई विभीषण के अच्छे विचारों का अनुपालन नहीं करता है . लेकिन इस बात को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता की दुर्योधन के पास भी तो अच्छे विचारों वाले विदुर है , फिर भी उनकी बात नहीं सुनता .
रावण और दुर्योधन दोनों ही प्राचीन कथाओं के महा खलनायक है , फिर भी रावण का स्थान हमेशा बेहतर रहेगा.
दुर्योधन अभ्यासी है . पुरे जीवन काल में कृष्ण हमेशा भीम को चेताते रहते हैं की तुम्हारे पास ताकत है तो दुर्योधन के पास अभ्यास . फिर भी दुर्योधन को जिद्दी खलनायक योद्धा के रूप में याद किया जाता है , परन्तु रावण को बहुत रूपों में जाना जाता है . रावण तपस्वी भी है , तपस्या से शिवजी को संतुष्ट करता है. ज्योतिष भी है. आज भी रावण संहिता ज्योतिष के अच्छे शास्त्र के रूप में जाना जाता है .
कृष्ण के मन में दुर्योधन के प्रति कभी भी सम्मान नहीं रहा , पर राम के मन में रावण के प्रति सम्मान है . यहां तक की जब राम लड़ाई में रावण को हरा देते हैं तो स्वयं जाते है रावण के पास जीवन की शिक्षा प्राप्त करने हेतु .
और रावण भी क्या शिक्षा देता है . ये जीवन का निचोड़ है . की जीवन में यदि कुछ अच्छा करना तो कभी टालना नहीं चाहिए , अपने शत्रु को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए , और अपने करीबी को अपना शत्रु कभी भी नहीं बनाना चाहिए .
इधर दुर्योधन को मौत भी अजीब परिस्थिति में होती है . मरते हुए भी अपने भाइयों के मौत की कामना करते हुए मरता है .
ये सारी घटनाएं रावण को दुर्योधन से बेहतर साबित करती है .
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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