शिलाद ऋषि के कोई पुत्र नही था ऐसे में भगवान शिव की तपस्या करके उनको एक दिव्य पुत्र की प्रप्ति हुई , इस पुत्र को पिता शिलाद ने सभी शास्त्रो की शिक्षा दे कर विद्वान बनाया ।
बाद में शिलाद ऋषि को पता चला कि यह बालक अल्पायु है ,ऐसे में वह चिंता ग्रस्त रहने लगे , पिता की चिन्ता पुत्र ने भाँप ली । और पिता से कहा कि आप चिन्ता न करे ,जिसने मुझे आपको दिया है वह स्वमं ही मेरे प्राणों की रक्षा करेंगे , ऐसा कह कर बालक नन्दी नदी किनारे घोर तपस्या करने लगे , तपस्या से प्रसन्न हो शिव जी बोले कि मांगो जो तुम्हारी इच्छा हो । इस पर बालक ने हमेशा हमेशा के लिए शिव सानिध्य मांगा , शिवजी ने प्रसन्न हो कर नन्दी को बैल स्वरूप में अपने गणों में शामिल कर प्रमुख गण का स्थान दिया ।