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क्यों जरूरी है चंचल मन को सही दिशा में लगाना

 


मनुष्य मन जो कि अथाह शक्ति और सामर्थ्य रखने वाला कहा जाता है। मन ऐसा है कि जो कभी भी शांत नहीं बैठ सकता, कुछ ना कुछ करते रहना इसकी प्रकृति का स्वरूप है, इसको सदैव कुछ न कुछ कार्य करने के लिए अवश्य चाहिए। अच्छे कार्य करने को नही मिलेंगे तो ये बुरे कार्यो को करने का विचार करने लगता है। जैसे ही ये मन खाली होता है, इसको बस उपद्रव सूझने लगते है। लड़ाई-झगड़ा, निंदा-आलोचना, विषय- विलास जैसी वृत्तियों में ये मनुष्य को ले जाने की पूरी कोसिस करता है जहाँ से मनुष्य का निश्चित रूप से पतन हो जाना शुरू हो जाता है।

 

कई बार यदि पतन केवल एक जन्म का ही हो तो भी कोई बड़ी बात नहीं, किन्तु कई बार तो ये चंचल मन व्यक्ति से ऐसी बड़ी गलती या कोई गलत कार्य करा देता है जिसके प्रारब्ध का फल भोगने के लिए कई कई जन्म भी बहुत कम पड़ जाते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि मन को सृजनात्मक और रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखना चाहिए। इससे व्यक्ति का आत्मिक साथ में भौतिक विकास भी होता है। मन यदि सत्य मार्ग में सही दशा की ओर लग गया तो ये जीवन आनंदमय हो जायेगा। अन्यथा मानव जीवन को अस्त-व्यस्त और दुख व्याधियों से भरने में भी ये चंचल मन तनिक भी देर नही लगने देगा।


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