समुद्र मंथन से निकले अमृत को, मोहिनी रूप धरे विष्णु भगवान् जब देवताओं में बांट रहे थे; तभी एक राक्षस भी वहीं आकर बैठ गया। भगवान् ने उसे भी देवता समझकर अमृत दे दिया। लेकिन तभी उन्हें सूर्य व चंद्रमा ने बताया कि ये राक्षस है। भगवान् विष्णु ने तुरंत उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन राहू के मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए उसका मुख अमर हो गया, पर भगवान् विष्णु द्वारा राहू के सिर काटे जाने पर उनके कटे सिर से अमृत की कुछ बूंदे ज़मीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे। चूंकि यह दोनों सब्जियां अमृत की बूंदों से उपजी हैं इसलिए यह रोगों और रोगाणुओं को नष्ट करने में अमृत समान होती हैं पर क्योंकि यह राक्षसों के मुख से होकर गिरी हैं इसलिए इनमें तेज़ गंध है और ये अपवित्र हैं जिन्हें कभी भी भगवान् के भोग में इस्तमाल नहीं किया जाता। जो लोग भौतिक शरीर को अधिक महत्व देते हैं वे लहसुन एवं प्याज दोनों खाते हैं। उन्हें इस लोक के अलावा परलोक के बारे में इस बात का चिंतन एवं मनन अवश्य करना चाहिए की मृत्युपरांत यह प्याज एवं लहसुन का भक्षण तामसिक योनि यानि पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े एवं सरि सर्प की योनि में ले जाएगा। तामस अज्ञान, जड़ता एवं मूढ़ता को उत्पन्न करता है।
जो भी प्याज और लहसुन खाता है उनका शरीर राक्षसों के शरीर की भांति मज़बूत हो जाता है लेकिन साथ ही उनकी बुद्धि और सोच-विचार राक्षसों की तरह दूषित भी हो जाते हैं। इन दोनों सब्जियों को मांस के समान माना जाता है। जो लहसुन और प्याज खाता है उसका मन तामसिक स्वभाव का हो जाता है। ध्यान, भजन में मन नहीं लगता। कुल मिला कर पतन हो जाता है इसलिए प्याज लहसुन खाना शास्त्रों में मना किया गया है।