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जब राजा जनक की सभा को महात्मा अष्टावक्र ने सिखाई मर्यादा

 
महात्मा अष्टावक्र का शरीर कई स्थानों से टेढ़ा-मेढ़ा था, इसलिए वह सुन्दर नहीं दिखते थे। एक दिन जब महात्मा अष्टावक्र राजा जनक की सभा में पहुँचे तो उनको देखकर सभा में उपस्थित सभी लोग उनके ऊपर हंस पड़े। महात्मा अष्टावक्र सभा के सदस्यों को हँसता देखकर पीछे की ओर वापस लौटने लगे। यह देख राजा जनक ने महात्मा अष्टावक्र से पूछा- ‘‘प्रभु ! आप पीछे की और क्यों जा रहे हैं?’’ तब महात्मा अष्टावक्र ने कहा- ‘‘राजन ! मैं मूर्खों की सभा में नहीं बैठता।’’ महात्मा अष्टावक्र की यह बात सभा के सदस्यों को बहुत बुरी लगी और उनमें से एक सदस्य ने क्रोधित होकर खिन्नता से पूछा- ‘‘हम बेवकूफ क्यों हुए? आपके शरीर की संरचना ही कुछ इस प्रकार की है तो इसमें हम क्या कर सकते है?’’
 
महात्मा अष्टावक्र ने उत्तर देते हुए कहा- ‘‘तुम लोग यह नहीं जानते हो कि तुम क्या कर रहे हो! अरे, तुम मुझ पर नहीं, सर्वशक्तिमान भगवान पर हँस रहे हो। मानव शरीर तो उस हांडी के जैसा है, जिसका निर्माण भगवान रुपी कुम्हार ने किया  है। हांडी की हँसी उड़ाना क्या उस कुम्हार की हँसी उड़ाना नहीं हुआ?’’ महात्मा अष्टावक्र का यह तर्क सुनकर राजा जनक की भरी सभा अति शर्मिंदा हो गयी और उन्होंने महात्मा अष्टावक्र से माफ़ी मांगी
 
सामान्य जीवन में भी अधिकांश लोग सामान्यतः किसी ना किसी मनुष्य को देखकर हँस पड़ते हैं, उनका हास्य उड़ाते हैं कि वह कैसे अजीब दिखता है या कैसे बेढंगे कपड़े पहने हुए है। किन्तु जब कोई ऐसा करता हैं तो कहीं न कहीं भगवान का ही मजाक उड़ा रहे होते हैं ना कि उस मनुष्य का। मनुष्य का निर्माण तथा निर्धारण उसके रंग, शरीर या कपड़ों से नहीं हुआ करता, बल्कि मनुष्य का निर्माण मनुष्य के विचारों एवं उसके अनुपालन से होता है।



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