शरीर चाहे धुप में हो, अंधेरे में हो या पानी के तल में, अपने भीतर सांस भरने का प्रयत्न कभी नहीं छोड़ेगा। हमारा स्वभाव ही है जानना और सीखना। जब तक उसे यह नहीं मिल जाता उसे पूरी तरह से, तृप्ति नहीं होती है। कहीं भी मीठा रखो अपनी जिज्ञासा के कारण चीटियां पहुंच ही जाती हैं। कोई हमें अच्छी तरह से पढ़ाये या न पढ़ाये हमारे में दूसरों से कुछ प्राप्त करने का सामर्थ्य होना चाहिए। हमें सीखने के प्रति अपनी जिज्ञासा बनाये रखनी है, शेष कार्य शरीर स्वयं ही कर लेगा। हमें कभी भी अपने ज्ञान को सीमा में नहीं बांधना चाहिए। हमेशा विचारों को विस्तृत और खुला रखना चाहिए। जैसे एक पतंग के उडऩे का कोई निश्चित मार्ग नहीं होता, कहीं भी वह उड़ सकती है और वापस लौट सकती है।