समस्याएँ ही तो जीवन को परिपक्व करने का उपाय हैं। समस्याएँ आती हैं, तुम उनसे जूझते हो और परिपक्व होते हो।
लेकिन याद रखना, समस्याएँ तुम्हें तभी परिपक्व कर पायेंगी जब तुम स्वयं उनसे जूझो, जब समाधान तुम्हारी अपनी चेतना खोजे। समस्या तुम्हारी हो और समाधान किसी और के तो तुम्हारी चेतना कभी परिपक्व नहीं होगी। कहीं से समाधान खोजने की अपेक्षा अपनी चेतना को ऊँचा उठाओ।
जैसे-जैसे चेतना ऊँची उठेगी, तुम अधिक जागरूक होते जाओगे और परिस्थितियों को अधिक चैतन्य होकर प्रत्युत्तर दे पाओगे। जैसे-जैसे चेतना विकसित होती है, व्यक्ति समस्याओं से निपटने में अधिक सक्षम होता जाता है। हाँ, नयी चेतना के साथ नयी समस्याएँ भी आयेंगी, लेकिन वे उच्च तल की होंगी। और जो नयी चेतना नयी समस्याएँ लाती हैं, वह नये समाधान भी लाती हैं। उच्चतर चेतना तुम्हें एक स्पष्टता देती है, समझ और साहस देती है।
मैं तुम्हें कोई समाधान नहीं देता, तुम्हें चेतना को ऊपर उठाने की कला सिखाता हूँ। फिर तुम स्वयं ही अपने समाधान खोज लोगे। और एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि तुम स्वयं ही समाधान बन जाओ।