बहुत हैरानी की बात है, एक आदमी क्रोध के बीज बोए और शांति पाना चाहे; एक आदमी घृणा के बीज बोए और प्रेम की फसल काटना चाहे; एक आदमी चारों तरफ शत्रुता फैलाए और चाहे कि सारे लोग उसके मित्र हो जाएँ; एक आदमी सबकी तरफ गालियाँ फेंके और चाहे कि शुभाशीष सारे आकाश से उसके ऊपर बरसने लगे!
यह असंभव है! पर आदमी ऐसी ही असंभव चाह करता है -- दि इम्पॉसिबल डिजायर!
मैं गाली दूँ और दूसरा मुझे आदर दे जाए, ऐसी असंभव कामना हमारे मन में चलती है। मैं दूसरे को घृणा करूँ और दूसरे मुझे प्रेम कर जाएँ; मैं किसी पर भरोसा न करूँ और सब मुझ पर भरोसा कर लें; मैं सबको धोखा दूँ और मुझे कोई धोखा न दे; मैं सबको दुख पहुँचाऊँ, लेकिन मुझे कोई दुख न पहुँचाए!
जो हम बोयेंगे, वही हम पर लौटने लगेगा। जीवन का सूत्र ही यह है कि जो हम फेंकते हैं, वही हम पर वापस लौट आता है। चारों ओर हमारी ही फेंकी हुई ध्वनियाँ प्रतिध्वनित होकर हमें मिल जाती हैं। थोड़ी देर अवश्य लगती है -- ध्वनि टकराती है बाहर की दिशाओं से, और लौट आती है।