भारतीय ज्योतिष का प्राचीनतम इतिहास (खगोलीय विद्या) के रूप सुदूर भूतकाल के गर्भ मे छिपा है,केवल ऋग्वेद आदि प्राचीन ग्रन्थों में स्फ़ुट वाक्याशों से ही आभास मिलता है,कि उसमे ज्योतिष का ज्ञान कितना रहा होगा। निश्चित रूप से ऋग्वेद ही हमारा प्राचीन ग्रन्थ है,बेवर मेक्समूलर, जैकीबो लुडविंग, ह्विटनी विंटर, निट्ज थीवो एवं तिलक ने रचना एवं खगोलीय वर्णनो के आधार पर ऋग्वेद के रचना का काल ४००० ई. पूर्व स्वीकार किया है। चूंकि ऋग्वेद या उससे सम्बन्धित ग्रन्थ ज्योतिष ग्रन्थ नही है,इसलिये उसमे आने वाले ज्योतिष सम्बन्धित लेख बहुधा अनिश्चित से है,परन्तु मनु ने जैसा कहा है कि भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात्प्रसिद्धयति। इससे स्पष्ट है कि वेद त्रिकाल सूत्रधर है,और इसके मंत्र द्रष्टा ऋषि भी भी त्रिकालदर्शी थे ।
ज्योतिष शास्त्र एक बहुत ही वृहद ज्ञान है। इसे सीखना आसान नहीं है। ज्योतिष शास्त्र को सीखने से पहले इस शास्त्र को समझना आवश्यक है। सामान्य भाषा में कहें तो ज्योतिष माने वह विद्या या शास्त्र जिसके द्वारा आकाश स्थित ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति, परिमाप, दूरी इत्यादि का निश्चय किया जाता है।
ज्योतिष शास्त्र की व्युत्पत्ति ज्योतिषां सूर्यादि ग्रहाणां बोधकं शास्त्रम् की गई है। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि ज्योतिष भाग्य या किस्मत बताने का कोई खेल-तमाशा नहीं है। यह विशुद्ध रूप से एक विज्ञान है। ज्योतिष शास्त्र वेद का अंग है। ज्योतिष शब्द की उत्पत्ति द्युत दीप्तों धातु से हुई है। इसका अर्थ, अग्नि, प्रकाश व नक्षत्र होता है। शब्द कल्पद्रुम के अनुसार ज्योतिर्मय सूर्यादि ग्रहों की गति, ग्रहण इत्यादि को लेकर लिखे गए वेदांग शास्त्र का नाम ही ज्योतिष है।