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ज्योतिष शास्त्र के पंचक की महत्वपूर्णता

 

ज्योतिष शास्त्र में पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। ये नक्षत्र हैं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार चंद्रमा अपनी माध्यम गति से 27 दिनों में सभी नक्षत्रों का भोग कर लेता है। इसलिए प्रत्येक माह में लगभग 27 दिनों के अंतराल पर पंचक नक्षत्र आते रहते हैं।

किस पंचक में कौनसा कार्य शुभ

पंचक नक्षत्रों के समूह में धनिष्ठा तथा सदभिषा नक्षत्र चर संज्ञक कहलाते हैं। इसी प्रकार पूर्व भाद्रपद को उग्र संज्ञक, उत्तरा भाद्रपद को ध्रुव संज्ञक और रेवती नक्षत्र को मृदु संज्ञक माना जाता है। ज्योतिषविदों के अनुसार चर नक्षत्र में घूमना-फिरना, मनोरंजन, वस्त्र और आभूषणों की खरीद-फरोक्त करना अशुभ नहीं माना गया है। इसी तरह ध्रुव संज्ञक नक्षत्र में मकान का शिलान्यास, योगाभ्यास और लम्बी अवधि की योजनाओं का क्रियान्वन भी किया जा सकता है।

मृदु संज्ञक नक्षत्र में भी गीत, संगीत, फिल्म निर्माण, फैशन शो, अभिनय करने जैसे कार्य किए जा सकते हैं। पंचक काल में विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश, व्यावसायिक कार्य किए जा सकते हैं। पंचक में यदि कोई कार्य किया जाना जरूरी हो तो, पंचक दोष की शांति का निवारण अवश्य कर लेना चाहिए।

पंचकों में भी आते हैं शुभ मुहूर्त, कर सकते हैं शुभ कार्य

ज्योतिषियों के अनुसार पंचकों में भी शुभ कार्य किए जा सकते हैं। इस दौरान सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त पंचक में आने वाले तीन नक्षत्र पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद व रेवती रविवार को होने से आनंद आदि 28 योगों में से 3 शुभ योग बनाते हैं, ये शुभ योग इस प्रकार हैं- चर, स्थिर व प्रवर्ध। इस समय उत्तराभाद्रपद  नक्षत्र वार के साथ मिलकर सर्वार्थसिद्धि योग बनाता है, जबकि धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद व रेवती नक्षत्र यात्रा, व्यापार, मुंडन आदि शुभ कार्यों में ज्योतिष की दृष्टि से अतिउत्तम माने गए हैं।

ऐसा होता है पंचक के नक्षत्रों का अशुभ प्रभाव

(1) धनिष्ठा नक्षत्र में आग लगने का भय रहता है।
(2)
शतभिषा नक्षत्र में वाद-विवाद होने के योग बनते हैं।
(3)
पूर्वाभाद्रपद रोग कारक नक्षत्र है यानी इस नक्षत्र में बीमारी होने की संभावना सबसे अधिक होती है।
(4)
उत्तरा भाद्रपद में धन हानि के योग बनते हैं।
(5)
रेवती नक्षत्र में नुकसान व मानसिक तनाव होने की संभावना होती है।

इनके अलावा भी होते हैं पंचकों के अशुभ प्रभाव

(1) रोग पंचक
रविवार को शुरू होने वाला पंचक को रोग पंचक कहा जाता है। इसके प्रभाव से शारीरिक और मानसिक परेशानियां होती हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए।

(2) राज पंचक
सोमवार को शुरू हुआ पंचक राज पंचक कहलाता है। ये अति शुभ पंचक माना जाता है। इस समय शुरू किए गए सभी कार्यों में सुनिश्चित सफलता मिलती है। इस समय  राजकार्य तथा जमीन-जायदाद से जुड़े कार्य करना शुभ रहता है।

(3) अग्नि पंचक
मंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इस पंचक के दौरान किसी भी तरह का निर्माण करना अशुभ रहता है। वरन यह समय मुकदमेबाजी तथा कोर्ट कचहरी के लिए अतिउपयुक्त माना जाता है।

(4) मृत्यु पंचक
शनिवार को शुरू होने वाला पंचक मृत्यु पंचक कहलाता है। जैसाकि नाम से ही जाहिर होता है, इस पंचक के दौरान किसी भी तरह का कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा मरण तुल्य कष्ट होता है।

(5) चोर पंचक
शुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। यह पंचक भी अशुभ ही माना जाता है। विशेष तौर पर इस समय लेन-देन, व्यापार, किसी भी तरह के सौदे या नई यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए अन्यथा धन और समय की हानि होती है।

ज्योतिष के अनुसार बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक में ऊपर दी गई बातों का पालन करना जरूरी नहीं माना गया है। इन दो दिनों में शुरू होने वाले दिनों में पंचक के पांच कामों के अलावा किसी भी तरह के शुभ काम किए जा सकते हैं। केवल राहूकाल तथा भद्रा का विचार अवश्य करना होता है।

पंचक में चारपाई बनवाना, दक्षिण दिशा की यात्रा करना, शव का अंतिम संस्कार करना आदि कार्य नहीं करने चाहिए इनसे धनहानि तथा भाग्यहानि होने का खतरा रहता है। इसी प्रकार रेवती नक्षत्र में घर की छत नहीं डालनी चाहिए। इससे घर में स्थाई क्लेश का वास हो जाता है।

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