एक सूफी फ़क़ीर हुआ, बायजीद ! वह अपनी प्रार्थना में परमात्मा से कहता था की मेरी प्रार्थनाओं का ख्याल मत करना! तू उन्हें पूरी मत करना! क्योंकि मेरे पर इतनी बुद्धिमता कहां है कि मैं वही मांग लूं जो शुभ है!
आदमी बिलकुल बुद्धिहीन है ! वह जो भी मांगता है, उसी के जाल में भटकता है ! अगर पूरा हो जाता है, तो मुश्किल खड़ी हो जाती है ! पूरा नही होता तो मुश्किल खड़ी हो जाती है ! तुम सोच कर देखो , अतीत में लौटो !
अपनी जिंदगी का एक दफा लेखा-जोखा करो ! तुमने जो माँगा , उसमे से कुछ पूरा हुआ है , क्या उससे तुम्हे सुख मिला ? तुमने जो माँगा , उसमे से कुछ पूरा नही हुआ है , क्या उससे तुम्हे सुख मिला ? तुम दोनों हालत में दुःख पा रहे हो ! जो माँगा है , उससे उलझ गए ! जो मिला है , उससे उलझ गए ! जो नही मिला है , उससे उलझे हुए हो !
बुद्धिमानी क्या है ? बुद्धिमानी का लक्षण क्या है ? बुद्धिमता का लक्षण है , उस सूत्र को मांग लेना जिसे मांग लेने से फिर दुःख नही होता ! इसलिए धार्मिक व्यक्ति के अतिरिक्त कोई बुद्धिमान नही है !
क्योंकि सिर्फ परमात्मा को मांगने वाला ही पछताता नही ! बाकी तुम जो भी मांगोगे , पछताओगे ! इसे तुम गाँठ बाँध कर रख लो ! तुम जो भी मांगोगे , पछताओगे ! सिर्फ परमात्मा को मांगने वाला कभी नही पछताता ! उससे कम में काम नही चलेगा ! वही जीवन का गंतव्य है !