सत्य रूपी धर्म की रक्षा करने वाले की विजय निश्चित है। सत्य को मिटाने का प्रयास करने वाला खुद ही मिट जाता है।
इतिहास साक्षी है कि अंतिम विजय सत्य की हो होती है। विजय प्राप्त करने के लिए सत्यमार्ग में आने वाली क िनाइयों से अवश्य जूझना पडता है, क्योंकि इस मार्ग पर चलना आसान नहीं है। मार्ग की क िनाइयों से विचलित हुए बिना सच्चाई के रास्ते पर चलने वाले को देर-सबेर यश व मोक्ष दोनों प्राप्त होते है। जो मार्ग की विघ्न-बाधाओं से घबराकर असत्य व अनीति की शरण में चला जाता है वह अस्थायी सुख-सुविधाओं की प्राप्ति के साथ लगातार पतन के गर्त में गिरता चला जाता है और अंतत:सामाजिक अपयश का पात्र बनता है।
प्रभु इच्छा को सर्वोपरि मानने वाले कभी दु:ख ही हो ही नहीं सकते। मानव देह में चंचल मन के होते इच्छाओं का जागना स्वाभाविक है व उन इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रयास करने में भी विशेष बुराई नहीं, किंतु मनचाहा पा लेने पर खुशी से फूलना व न होने पर कुं ित हो जाना ीक नहीं है। सुख व दु:ख दोनों को धूप-छांव मानने वाले जीवन की इन दोनों स्थितियों का आनंद लेते है। दूसरी ओर संसार में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो अपनी विचलित मन:स्थिति के चलते कभी भी जीवन के आनंद से परिचित नहीं हो पाते।