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धर्म सिखाता है प्रेम, हिंसा नहीं

 

जब परमात्मा और प्रकृति एक हैं तो हम धर्म के नाम पर अलग क्यों हो जाते हैं? धर्म हमें प्रेम सिखाता है, मगर हम धर्म के नाम पर शस्त्र उ ा लेते हैं। यह बात ब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने कही।

विभिन्न शास्त्रों में जो मंत्र दिए गए हैं वे बहुत प्रभावशाली हैं, मगर उन्हें पासवर्ड द्वारा ही खोला जा सकता है। सुख-दुख की विवेचना करते हुए वह बोले कि आज आदमी दुखी हैं, क्योंकि वह केवल लेना जानता है। उसे पता नहीं है कि देने में कितना सुख मिलता है। लोग कमाना तो जानते हैं, मगर लुटाना नहीं जानते इसलिए दुखी रहते हैं।

वह बोले कि विश्व में अनेक धर्मो और मतों को मानने वाले लोग हैं, मगर सबका सार एक ही है, लेकिन हमने धर्म के मूल को समझने की बजाय परमात्मा को ही बांट दिया है। पर क्या हम परमात्मा को बांट सकते हैं? जब प्रकृति, उसके सूरज, चांद, वायु, आकाश सभी धर्मो के लोगों के हैं तो अल्लाह, ईश्वर, जीसस और वाहेगुरु अलग कैसे हो गए? यदि हिंदू किसी मस्जिद में जाकर प्रार्थना करे तो क्या अल्लाह उसकी पुकार नहीं सुनेगा? मुस्लिम की प्रार्थना क्या मंदिर का ईश्वर नहीं सुनेगा? सूर्य का कोई धर्म नहीं है, वह सभी धर्मो का है। उसका एकमात्र ध्येय मानव मात्र को प्रकाश प्रदान करना है।

 

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