Home » Article Collection » परमात्मा और सत्संग

परमात्मा और सत्संग

 

परमात्मा से मिलने की आकांक्षा जिस दिन जग जावे, बस उसी दिन शुरू हो जाओं, कभी तारीख मत बदलो, समय का क्या भरोसा है? आज हम बूढ़े हो जाते है पर भजन करने का विचार नहीं आता, कई लोग विचार करते रहते है कि कल भगवान् का भजन करेंगे, कल भजन करेंगे, कल करेंगे कल-कल करते काल आ जाता है, भजन न होकर पतन हो जाता है, कुछ पाता नहीं, समय यूँ ही निकल जाता है। इसलिए आवश्यक है कि सन्तों का संग एवं सत्संग किया जाय। संत-महापुरुष की वाणियों, उपदेशों को सुनना-मनन करना ही वाह्य सत्संग है जो हमें आन्तरिक सत्संग की ओर प्रेरित करता है, ले जाता है।

एक पल का भी सत्संग किसी को मिल जाये, तो उस सत्संग की बराबरी कोई कर नहीं सकता, न स्वर्ग कर सकता है, न ही तीर्थ कर सकते हैं, ये बात नितांत सत्य हैं। क्या दुर्योधन ने जीवन में सौ-दो सौ बार भगवान् श्रीकृष्ण का दर्शन नहीं किया था? क्या शिशुपाल ने दस-पाँच बार भी श्रीकृष्ण का दर्शन नहीं किया था? पर वे फिर भी अपने विकारों को तो नहीं जीत सके, आसुरी वृत्तियों पर विजय तो प्राप्त नहीं कर सके।

बिना सत्संग के जीव को विवेक नहीं मिलता और राम कृपा बिना सत्संग भी सुलभ नहीं होता, परमात्मा जब पूरी कृपा करते हैं तो ही सत्संग मिलता है, नहीं तो ऐसे कितने ही लोग मिलेंगे कि सामने मैदान में (संत द्वारा) भगवत-कथा हो रही है, और वे उसके पीछे गली में ताश खेल रहे है, उनको भगवान् से कोई लेना-देना नहीं है। कुछ लोग भगवत-कथा में रूचि तो रखते है लेकिन सांसारिक आसक्तिवश टीवी में ही मस्त रहते है, सत्य की यात्रा पर निकलते ही नहीं, जीवन उसी आसक्ति में ही बीत जाता है।

सत्संग का चस्का जिसको लग जाता है, सत्संग से जिसको अनुराग हो जाय, उसको सत्संग के आगे कुछ भी अच्छा नहीं लगता, और सत्संगी के ऊपर परमात्मा की कृपा सदैव बरसती रहती है।

Copyright © MyGuru.in. All Rights Reserved.
Site By rpgwebsolutions.com