गुरुओं व पीरों की धरती पर विस्तृत संस्कृति ने महान पर्व प्रदान किए हैं।
इनसे पर्वो से प्रभु की भक्ति की ओर बढने का अवसर प्राप्त होता है, क्योंकि परमात्मा ही सच्चा सखा है। बैसाखी भी ऐसा ही पर्व है। जो आपसी भाईचारे तथा प्रभु को पाना सिखाता है। आजकल स्वार्थ की अंधी दौड में ऐसे त्योहारों का महत्व कई गुणा बढ जाता है। इन अवसरों पर संसारिक तृष्णा को छड प्रभु की सच्ची मित्रता का अभ्यास करना चाहिए, क्योंकि लौकिक से आलौकिक की यात्रा के लिए ही मनुष्य जीवन मिला है। हर पल उस प्रभु के आगे अरदास करने की जरूरत है। फिर जिंदगी में भी ऐसे मित्र आ जाएंगे, जिससे जीवन भी एक आदर्श बन जाएगा।