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पूजा करते समय सिर ढकने का रहस्य

 
धार्मिक स्थलों पर सिर पर कपड़ा रखकर ही दर्शन या इबादत की जाती है । यज्ञ , हवन, पूजा शुभ कार्यो में सिर पर रुमाल या अन्य वस्त्र रखते है । यहाँ तक की घर की स्त्रियाँ बड़े- बूढ़े बुजुर्ग , सास- ससुर से आशीर्वाद लेती है तो सिर को साड़ी के पल्लू या चुन्नी से ढक कर लेती है, यह उनके सम्मान का सूचक होता है । बड़ो को आदर देने के लिए भी सिर ढक कर रखा जाता है । कई जगह पर तो स्त्रियाँ नियमित रूप से सिर को ढक कर ही रखती है ।
   आखिर क्या है रहस्य ? मनुष्य के शरीर में सिर अंग बड़ा संवेदनशील है। हमारे शरीर में ७२,००० सूक्ष्म नाड़ियां होती है। इनमे तीन मुख्य नाड़ियां है, सुष्मना नाड़ी, पिंगला नाड़ी और इड़ा नाड़ी । सुष्मना नाड़ी, मध्य नाड़ी है जो रीढ़ की हड्डी के मूल से लेकर सिर के ऊपर तक जाती है। पिंगला नाड़ी सुष्मना नाड़ी के दाए से जाती है। इड़ा नाड़ी बाए से जाती है जैसे तीन पवित्र नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम सिर के मूल में होता है, सिर के मूल में ब्रहाअरंध्र के ऊपर सूक्ष्म द्वार है जो एक हज़ार पंखुड़ियों का कमल है उसे ही सहस्त्रार चक्र कहते है। इसी चक्र से पूर्ण शरीर चलता है, इसी में ही सम्पूर्ण शक्ति विराजमान होती है। इसी को आत्मा का स्थान सूत्रात्मा कहा गया है। इसी से ईश्वरीय शक्ति ग्रहण की जाती है।
   ब्रह्मन्ध्र, शरीर की सूक्ष्म ऊर्जाओं को ग्रहण करता है उसी ऊर्जा को पुनः ऊपर की ओर ले जाता है। ब्रह्माण्ड में अनगिनत ऊर्जा प्रति क्षण घूमती है जब आप ध्यान अथवा उपासना करते है तो शरीर एक स्थान पर स्थिर अचल हो जाता है, उस अचल अवस्था के दौरान ब्रह्माण्ड में मौजूद बहुत साड़ी ऊर्जा, हमारे शरीर में मौजूद बहुत साड़ी ऊर्जा, हमारे शरीर में सिर के माध्यम से प्रवेश करने लग जाती है। ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तीव्रगामी और अत्यंत शक्तिशाली होती है। इन्ही ऊर्जाओं से पृथ्वी के सभी तत्व चलायमान है। अगर किसी कुंभ; घड़े में अधिक ऊंचाई से पानी डाला जाए तो वह कुंभ टूट कर बिखर जाता है उसी प्रकार उपासना, ध्यान ओर पूजा करते समय शरीर कुंभ का रूप धारण कर लेता है। जब कुंभ रुपी शरीर में शक्तिशाली ऊर्जा शरीर में शक्तिशाली ऊर्जा सिर के ऊपर, ऊंचाई से गिरेगी तब सिर पर भयंकर प्रहार होगा, जिससे शरीर में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ब्रह्माण्ड में शुद्ध ऊर्जाओं के साथ- साथ अशुद्ध ऊर्जाओं का भी साम्राज्य है। यह अशुद्ध ऊर्जा शरीर में प्रवेश ने करे इसलिए सिर पर सूती वस्त्र, कपड़ा ढकते है, जैसे चाय देते समय उसको  चना जाता है ताकि साफ़ चाय पात्र में आ सके और अन्य सामग्री चलनी में रह जाए इसी प्रकार सिर पर वस्त्र रखने से अशुद्ध ऊर्जा उस वस्त्र में अटक जाती है और शुद्ध ऊर्जा शरीर में प्रवेश कर जाती है।
   ध्यान, उपासना  के समय ब्रम्हरन्ध्र के माध्यम से शरीर में ऊर्जा जागृत होने लग जाती है। ऊर्जाओं का प्रभाव शक्तिशाली होता है जिसके प्रभाव से सिरदर्द, चककर आना, उलटी आदि हो सकती है इन्ही अशुद्ध ऊर्जाओं के प्रभाव को रोकने के लिए सिर पर कपड़ा अथवा शिखा राखी जाती है। सिर पर कपड़ा रखने का का अन्य कारण मन का इधर उधर भटकना है पूजा के समय आँखे इधर उधर नहीं भटकती ।
   किसी व्यक्ति की मृत्यु के उपरान्त उसकर परिवार के सदस्यों का मुंडन किया जाता है ताकि मृत व्यक्ति की नकरात्मक ऊर्जा सदस्यों के बालो को ग्रहण न करें चूँकि स्त्रियाँ अपने सिर को ढक के रखती है इसलिए वे नकरात्मक कीटाणु उनके बालो पर अपना अधिक प्रभाव नहीं दिखा पाते। नवजात का भी मुंडन कराया जाता है ताकि गर्भ के दौरान उसके बालों में चिपके हुए अशुद्ध कीटाणु समाप्त हो जाये ।
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Posted Comments
 
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।"
Posted By:  संतोष ठाकुर
 
"om namh shivay..."
Posted By:  krishna
 
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye"
Posted By:  vikaskrishnadas
 
"वास्तु टिप्स बताएँ ? "
Posted By:  VAKEEL TAMRE
 
""jai maa laxmiji""
Posted By:  Tribhuwan Agrasen
 
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है"
Posted By:  ओम प्रकाश तिवारी
 
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