हनुमानजी की उपासना ब्रह्मचर्यपालन, शत्रुओं के नाश, काम-विजय, कार्यसिद्धि, दु:खों को दूर करने, रोगों के नाश, साधक को भगवान में विश्वास रखने वाला बनाने और अंतकाल में प्रभु श्रीराम से मिलाने के लिए की जाती है । हनुमानजी के स्मरण से ही बुद्धि, बल, यश, धीरता, निर्भयता, आरोग्य, सुदृढ़ता और बोलने में महारत प्राप्त होती है और मनुष्य के अनेक रोग दूर हो जाते हैं । भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, राक्षस उनके नाम लेने मात्र से ही भाग जाते हैं—
हनुमानजी की उपासना करने वाले व्यक्ति को शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता का पालन करना चाहिए ।
हनुमानजी की उपासना में पूजा, जप, पाठ और ध्वजा-पताका आदि प्रमुख हैं ।
हनुमानजी को कुएं के शुद्ध ताजा जल या गंगाजल से ही स्नान कराना चाहिए । पर्वों पर दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बने पंचामृत से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराना चाहिए।
हनुमानजी को केसर मिला मलयागिरि चन्दन या लालचन्दन लगाएं ।
शुद्ध घी या तिल या चमेली के तेल में सिन्दूर मिलाकर हनुमानजी को चोला चढ़ाना चाहिए । इससे हनुमानजी प्रसन्न होते हैं। लंका विजय के बाद जब श्रीरामचन्द्रजी ने सभी को उपहार प्रदान किए तो उस समय सीताजी ने हनुमानजी को एक बहुमूल्य मणियों की माला दी, किन्तु उसमें श्रीराम-नाम न होने से हनुमानजी उदास हो गए । तब सीताजी ने उन्हें अपनी मांग का सिन्दूर देकर कहा कि ‘यह मेरा मुख्य सौभाग्यचिह्न है, इसको मैं धन-धाम व रत्नों से भी अधिक प्रिय मानती हूँ, तुम इसको स्वीकार करो ।’ हनुमानजी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया । इसीलिए हनुमानजी को तेलमिश्रित सिन्दूर का सर्वांग में लेप करते हैं ।
हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचारी हैं इसलिए उन पर पुरुषवाचक नाम वाले फूल —गुलाब, गेंदा, कमल, केवड़ा, हजारा और सूरजमुखी आदि की बनी माला और पुष्प अर्पण करें ।
हनुमानजी को जो नैवेद्य चढ़ाया जाए वह शुद्ध घी में बना होना चाहिए । घर पर बनाया प्रसाद सर्वश्रेष्ठ है ।हनुमानजी को गुड़, भुना चना, पुए, केला, अमरूद और बेसन के लड्डू और बूंदी का भोग प्रिय है । प्रात:काल उन्हें गुड़, नारियल का गोला और मोदक (लड्डू) का; दोपहर को गेहूँ की रोटी का चूरमा या घी में बने रोट, और रात्रि में आम, अमरूद या केला अर्पण करना चाहिए ।
हनुमानजी श्रीरामचन्द्रजी की कथा सुनकर प्रसन्न होते हैं इसलिए वाल्मीकीय रामायण, रामचरितमानस और विशेषकर सुन्दरकाण्ड के पाठ से विशेष रूप से प्रसन्न होते है ।
पूजन के बाद जप करने से हनुमानजी को प्रसन्न होते देर नहीं लगती । ‘राम-राम’ या ‘सीताराम’ जपना शुरु कर दीजिए बस वे रामभक्त प्रसन्न होकर स्वयं उपस्थित हो जाते हैं ।
हनुमानजी के उपासक को अभिमान, झूठे दर्प का त्यागकर स्वार्थ रहित सेवा के आदर्श को अपनाना चाहिए तभी हनुमानजी की कृपा प्राप्त हो सकती हैं । हनुमानजी जब मनुष्य को सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए उपासना करते देखते हैं तो वे निराश हो जाते हैं ।