भवतु सदा मङ्गलम्।
सर्वेभ्यो भक्तेभ्यो नमो नमः।
धारयते इति धर्मः
जो धारण किया जाय वह धर्म है। प्रश्न उठता है क्या धारण किया जाय?
वह कार्य-व्यवहार जो हमें सर्वव्यापी परमात्मा के सान्निध्य का प्रतिपल बोध कराये, हमें प्रभु प्रेम से ओत-प्रोत कर दे।
धर्म का मधुर और सरल अर्थ है- भगवान् से प्रेम, उनके भजन में तन्मयता।
व्याकरण के सूत्रों से संस्कृत भाषा का समुचित ज्ञान प्राप्त होता है किन्तु परमात्मा के भजन से हमें उनके पवित्र और ममता से परिपूर्ण प्रेम का आनन्द प्राप्त होता है। भजन भी ऐसा होना चाहिये, जहाँ मैं स्वतः विगलित हो जाये तथा केवल तू अर्थात् परमात्मा का सर्वत्र सहज बोध हो।
जब तक हमें करने और कराने का स्मरण गुद्गुदाता है, तब तक प्रभु का पूजन-वन्दन और भजन एकमात्र औपचारिकता है, किन्तु जब हम प्रभु की प्रसन्नता के केन्द्र होकर, उनमें डूब जाते हैं, तब भजन हमें उस शून्य की ओर ले जाता है, जहाँ केवल एक ही शेष होता है- वासुदेवः सर्वम् ।
तब एक भगवत्प्रेमी का हृदय बोलता है, वाणी मौन हो जाती है। जहाँ भक्त और भगवान् एक होकर सर्वं
हि खल्विदं ब्रह्म ऋषिप्रणीत उपनिषद् वाक्य साकार हो उठता है।
तब परमबोधत्व शब्दों से नहीं केवल अश्रुपूरित मौन से अभिव्यक्त होता है।
श्रीरामचरित मानस में श्रीभगवद्वाक्य है-
मम गुन गावत पुलक सरीरा।
गदगद गिरा नयन बह नीरा॥
काम आदि मद दंभ न जाकें।
तात निरंतर बस मैं ताकें॥
मेरा प्रिय भक्त मेरा गुणगान करते समय उसका शरीर पुलकित हो जाए, वाणी गद्गद हो जाए और उसके नेत्रों से प्रेमाश्रुओं की अविरल धारा बहने लगे मम, जिसमें काम, मद और दम्भ का नितान्त अभाव हो जाये, ऐसे परम पवित्र प्रेममूर्ति अपने भक्त के मैं सदा वश में रहता हूँ।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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