उन पलों में यह मिट जाता है अत: निश्चित ही यह शारीरिक नहीं। तुम्हें अधिक प्रेम देना सीखना होगा। तुम्हे बस लेने का अनुभव है। तो पहला अनुभव जो उसके अचेतन तक पैठ जाता है वह प्रेम लेने का है। परंतु समस्या यह है कि हर व्यक्ति बच्चा रहा है और हर व्यक्ति के भीतर प्रेम पाने की आकांक्षा है; कोई भी किसी अलग ढंग से पैदा नहीं हुआ है। तो सभी मांग रहे हैं हमें प्रेम दो लेकिन देने वाला कोई भी नहीं क्योंकि वे भी उसी तरह पैदा हुए हैं। हमें सजग व सचेत रहना चाहिए कि हम जन्म की यह अवस्था हमारे पूरे जीवन पर आच्छादित न हो जाए। प्रेम देना बहुत सुंदर अनुभव है क्योंकि देने में तुम सम्राट हो जाते हो। लेना बहुत तुच्छ अनुभव है क्योंकि तुम भिखारी हो जाते हो।
जहां तक प्रेम
का प्रश्न है,
भिखारी मत बनो,
सम्राट रहो क्योंकि तुम्हारे भीतर
यह गुणवत्ता असीम
है। तुम जितना
देना चाहो, दिए
चले जा सकते
हो। तुम यह
चिंता मत करना
कि यह चुक
जाएगा, कि एक
दिन तुम पाओगे
कि हे प्रभु, मेरे पास तो प्रेम देने के लिए बचा ही नहीं। प्रेम मात्रा नहीं, गुणवत्ता है, ऐसी गुणवत्ता ..जो
देने से बढ़ती
है और पकड़े
रहने से मर
जाती है।
अत: इसे पूरी
तरह लुटा दो।
चिंता मत लो,
किसे..यह कंजूस
व्यक्ति सोचता है: मैं
उसे प्रेम दूंगा
जिसमें अमुक गुण
होंगे। तुम्हें पता
ही नहीं कि तुम्हारे पास
कितना प्रेम है..तुम भरे हुए
बादल हो। बादल
यह चिंता नहीं
लेता कि कहां
बरसे। चट्टान हो
कि उपवन या
कि सागर– कोई
परवाह नहीं। यह
स्वयं को हल्का
करना चाहता है
और वह निर्भारता ही
विश्रांति है।
तो पहला रहस्य है: इसे मांगें मत, प्रतीक्षा मत करें कि कोई आएगा तो हम देंगे। बस दे दें।
अपना प्रेम किसी को भी दें..किसी अजनबी को ही सही। प्रश्न यह नहीं है कि तुम कुछ बहुत कीमती दे रहे हो, कुछ भी, थोड़ी सी सहायता, और वह काफ़ी है।
चौबीस घंटों में तुम जो भी करते हो उसे प्रेम से करो और तुम्हारे दिल की पीड़ा मिट जाएगी। और क्योंकि तुम इतने प्रेमपूर्ण होओगे, लोग तुम्हें प्रेम करेंगे। यह स्वाभाविक नियम है। तुम्हें वही मिलता है जो तुम देते हो। वास्तव में तुम उससे अधिक पाते हो जो तुम देते हो। देना सीखो और तुम पाओगे कि लोग तुम्हारे प्रति कितने प्रेमपूर्ण हैं, वही लोग जिन्होंने तुम्हारे प्रति कभी ध्यान नहीं दिया। तुम्हारी समस्या यही है कि तुम्हारा दिल प्रेम से भरा है लेकिन तुम कंजूस रहे हो; वही प्रेम तुम्हारे दिल पर बोझ हो गया है। दिल को खुला रखने की बजाए तुम इसे पकड़े रहे तो कभी-कभार, किसी प्रेम की घड़ी में यह पीड़ा तिरोहित होने लगती है।
प्रेम बांटो। बस बांटो, और तुम अपने भीतर असीम शांति व मौन का अनुभव करोगे। यही तुम्हारा ध्यान बन जाएगा। ध्यान में उतरने की विभिन्न दिशाएं हैं; और शायद तुम्हारी दिशा यही है।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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