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बुद्धि क्या होती है

 

बुद्धि तीन प्रकार की होती है -
1.
सात्विक बुद्धि 
2.
राजसिक बुद्धि 
3.
तामसिक बुद्धि -

ऐसा इसलिए है क्योंकि यह प्रकृति त्रिगुणमयी है यानी प्रकृति के तीन गुण है- सत्, रजतम (सतोगुण, रजोगुण तमोगुण) ।हमारी बुद्धि इन प्राकृतिक गुणों मे से किसी न किसी एक गुण से प्रभावित होकर उसे धारण कर लेती है।इसमे पूर्वजनन्मार्जित संस्कार और वर्तमान मे किसी विशिष्ट प्रभाव का होना सहयोगी की भूमिका अदा करता है ।इन तीनों के सामान्य लक्षण निम्न है-

सात्विक बुद्धि

जो बुद्धि सात्विक गुणों को धारण कर लेती है और सतोगुणी हो जाती है वह सात्विक बुद्धि कहलाती हैं ।ऐसी बुद्धि प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग को ,कर्तव्य और अकर्तव्य को,भय और अभय को तथा बन्धन और मोक्ष को तत्वरूप से जानती है इसलिये सतोगुणी और सात्विक बुद्धि होने से "सद्बुद्धि " कहलाती है।केवल बुद्धि अपने आप मे न तो हितकारी हो सकती है और न कल्याणकारी जब तक वह "सद्बुद्धि " न हो ।अगर "सद्बुद्धि " नही होगी तो या तो "रजोगुणी बुद्धि " होगी या "तमोगुणी बुद्धि " होगी।तीनो मे से कोई एक तो अनिवार्यतः होगी क्योकि बुद्धि तीन प्रकार की ही होती है।अपने आप में सिर्फ" बुद्धि " नहीं होती ।

राजसिक बुद्धि

जो बुद्धि "धर्म" और "अधर्म " को तथा "कर्तव्य " और "अकर्तव्य " को वास्तविक रूप मे नही समझ पाती वह "राजसिक बुद्धि " कहलाती हैं ।राजसिक बुद्धि का व्यक्ति यह ठीक से समझ नही पाता कि क्या ठीक है और क्या गलत है ।उसकी बुद्धि त्रिशंकु के समान अधबीच मे रहती है।उसे धर्म मे भी थोड़ा सा अधर्म दिखाई देता है और अधर्म मे भी थोड़ा धर्म दिखाई देता है।ऐसी बुद्धि वाला व्यक्ति सदैव उलझन और असमंजस मे रहता है, कोई उचित निर्णय नही ले पाता क्योंकि दोनो तरफ चलता हैं, डबल माईन्ड रहता है इसलिये राजसिक बुद्धि वाला सदैव तनाव और दुविधा मे रहता है।सबसे ज्यादा तनाव ,चिन्ता, अशान्ति और उत्तेजना राजसिक बुद्धि वाले के जीवन मे रहती है।ऐसे रजोगुणी बुद्धि वालों की संख्या सतोगुणी बुद्धि वालो की अपेक्षा बहुत ही ज्यादा है इस संसार में।

तामसिक बुद्धि

जो बुद्धि "अधर्म "को "धर्म " मानती है ,सभी अर्थो के विपरीत चलती है वह तामसिक बुद्धि कहलाती है।यह बुद्धि उलटी चलती है यानी वाममार्गी होती है।यह बुद्धि अधर्म, अत्याचार और भ्रष्टाचार को सही मानती ,प्रकाश को अन्धकार और अन्धकार को प्रकाश मानती है।तामसिक बुद्धि वाला शीर्षासन कर रहा होता है अर्थात उल्टी खोपड़ी का होता है इसलिये सब कुछ सीधा होते हुए भी उसे उल्टा दिखाई देता है ।ऐसे तमोगुणी व्यक्तियों की संख्या इस संसार मे सबसे ज्यादा है ।
इस संसार मे क्वालिटी की संख्या क्वांटिटी से हमेशा ही कम रही है ।सतोगुण सिर्फ क्वालिटी ही नही बल्कि बेस्ट क्वालिटी है इसलिये सतोगुण, सतोगुणी बुद्धि और सतोगुणी बुद्धि वाला व्यक्ति ये हमेशा से कम ही रहते आये है इसलिये सात्विक बुद्धि वाला व्यक्ति खोजना बहुत मुश्किल है क्योंकि उसे पहचानने के लिये सतोगुण से संचालित दृष्टि चाहिये।
भारतीय दर्शन, भारतीय मनोविज्ञान और आयुर्वेद शास्त्र इस विषय की सूक्ष्म व विस्तृत तथा व्यवहारिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।भारतीय अध्यात्म का सर्वोच्च मन्त्र "गायत्री " सतोगुण को धारण और आकर्षण करने का सर्वोत्तम अस्त्र है।

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