ब्रह्मचर्य प्रतिष्ठायां वीर्य लाभः ।
अर्थात् जीवन में ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा से वीर्य का लाभ होता है ।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस श्लोक के द्वारा ऋषि समाज को अथवा मानव जीवन को सामर्थ्यवान बनाने का सूत्र बता रहे हैं । शास्त्रों में सामर्थ्यवान को वीर्यवान की उपमा दी गई है । उदाहरण के लिए श्रीमद्भागवत् गीता में पाण्डवों की सेना के महान् योद्धाओं को वीर्यवान कह कर सम्बोधित किया गया है ।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि ।
युयुधानो विराट द्रुपद महारथः ॥
धृड्ढकेतु कितानः काशिराज वीर्यवान् ।
पुरुजित्कुन्तिभोज शैबय नरपुअङ्ग वः ॥
युधामन्यु विक्रान्त उत्तमौजा वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेया सर्व एव महारथाः ॥
यहाँ पाण्डवों की सेना में बड़े-बड़े शूरवीर है ।जिनके बड़े-बड़े धनुष है व युद्ध में भीम व अर्जुन के समान है । युयुधान (सात्यकि) राजा विराट और द्रुपद जैसे महारथी है । धृष्टकेतु, चेकितान तथा काशीराज जैसे पराक्रमी भी है । पुरुजित् और कुन्तिभोज तथा मनुष्य में श्रेष्ठ शैब्य भी है । युद्धमन्यु जैसे पराक्रमी व उत्तमौजा जैसे वीर्यवान भी हैं ।
प्राचीन काल में वातावरण पवित्र एवं सात्विक था । नर और नारी परस्पर पवित्र दृष्टि रखते थे एवं लोग सहजता से ब्रह्मचर्य का पालन कर लेते थे । नर और नारी का सह-सामीप्य उमंग उल्लासपूर्ण और दिव्यता से भरा भी हो सकता है । यदि दोनों की दृष्टि पवित्र है । इस परिस्थिति में नारी को पुरुष की शक्ति कहा जाता है । परन्तु दुर्भाग्यवश आज नारी के भोग्य स्वरूप का समाज में इतना अधिक प्रचलन हो गया है व नारी भी स्वयं को उसी रूप से प्रस्तुत ( प्रदर्शित ) करने लगी है । इस कारण ब्रह्मचर्य का पालन एक चुनौती बन गया है ।
आयुर्वेद के अनुसार शरीर सात धातुओं से बना है । जिसमें वीर्य एक महत्वपूर्ण धातु है । युवा अवस्था में शरीर में वीर्य धातु पर्याप्त मात्रा में होती है । इस कारण व्यक्ति सशक्त जीवन जीता है । परन्तु 40
वर्ष के उपरान्त यह धातु कमजोर पड़ने लगती है अतः असावधान व्यक्ति तरह-तरह के गम्भीर रोगों से घिरने लगता है ।
जो व्यक्ति स्त्री लोलुप होकर वीर्य धातु को दुर्बल बना लेते है अथवा जो स्त्री के विषय में संयमी रहकर वीर्य को पुष्ट बना लेते हैं । उनके परिणाम के विषय में आयुर्वेद कहता है ।
भ्रम क्लमोरूदौर्बल्य बल धात्विन्द्रियि क्षयाः ।
अपर्वमरणं च स्यादन्यथागच्छतः स्त्रियिम् ॥
उपर्युक्त विधि पालन न करने से भ्रम, क्लम, जांघों में निर्बलता, बल व धातुओं का क्षय, इन्द्रियों में निर्बलता और अकाल मृत्यु- ये परिणाम होते हैं । और यदि इस विधि का पालन किया जाए तो-
समृति मेधाऽऽपुरातोग्य पुष्टीन्द्रिय यशोबलैः ।
अधिकामन्दजरसौ भवन्ति स्त्रीषु संयता ॥
स्त्रियों के विषय में संयमी पुरुष याद्दाश्त, बुद्धि ,आयु, आरोग्य-पुष्टि, इन्द्रिय-शक्ति, शुक्र, यश और बल में अधिक होता है और बुढ़ापा उसको देर से आता हैं ।
ब्रह्मचर्य के विषय में हमें दो विरोधी विचार धाराओं का टकराव देखने का मिलता है । एक है पूर्व की धारा जिसको हम भारतीय संस्कृति कहते हैं व दूसरी है पश्चिम की धारा । हमारी संस्कृति ब्रह्मचर्य पालन पर बहुत जोर देती है व इसको तपों में सर्वोत्तम तप कहकर सम्बोधित करती है । पश्चिम की संस्कृति में इस बात का जोर है कि इन्द्रियों के दमन से मानसिक विकृतियाँ जन्म लेती हैं । अतः व्यक्ति को स्वच्छंद जीवन जीना चाहिए । सैक्स से जीवन में रस आता है व सम्पूर्ण शरीर में एक प्रकार की पररिवर्तन आता है । जो वीर्य निकलता है उसकी क्षति कुछ कैल्शियम, पोटाशियम, व मिनिरल के द्वारा आसानी से हो जाती है । सैक्स से व्यक्ति जवान बना रहता है नहीं, तो जीवन निरस्त हो जाती है । पश्चिम के एक दार्शनिक ने इस दिशा में काफी शोध कार्य किया है। पश्चिम की सोच उन्हीं की शोध और खोज पर आधारित है ।
पूर्व और पश्चिम के मतों में भिन्नता इसलिए है । क्योंकि पश्चिम के लोग वासना की तृप्ति के लाभों को ही जान पाएँ । उनकी शोधें उनकी पशु प्रधान जीवन प्रदान करने में सफल रही है । इस से आगे मानवेतर जीवन की महत्ता वो समझ ही नहीं पाये । परन्तु भारत के लोगों ने वासना के रूपान्तर के ज्ञान को जाना है । वासना के उर्जा को शक्ति में रूपान्तर करने का रहस्य जाना है
वासना शक्ति को रूपान्तरित करके कैसे व्यक्ति तेजस्वी, वर्चस्वी, औजस्वी बन सकते है । इस विद्या पर हमारे बहुत शोध कार्य हुआ है । जैसे जल नीचे की ओर गिरता है, बिखरा रहता है । परन्तु यदि उसको भाप बना कर एक निश्चित दिशा में प्रयोग किया जाएँ तो वह बहुत शक्तिशाली हो जाता है । कुछ-कुछ इसी तरह का सिद्धांत हमारे ऋषि देते हैं ।
एक डॉक्टर के क्लीनिक में यदि ऐसे दस मरीज आएँ कि घी खाकर पेट गड़बड़ हो गया और डॉक्टर कहने लगे कि घी खाने से स्वास्थ्य खराब होता है । तो यह जानकारी अधूरी होगी । यह कहना उचित होगा कि जिनका पाचन कमजोर हो वे ना लें । परन्तु अच्छे पाचन वाले व्यक्ति घी खाकर बलवान बन सकते हैं । इसी प्रकार जो लोग वासना के रूपातरूण में सफल हो जाते हैं वो अत्यन्त शक्तिशाली बन सकते हैं । मनोरोगी तो वो बनते है जो इस विद्या को ठीक से सीख नही पाते व लम्बे समय तक वासनाओं का दमन करते हैं ।
विद्युत शक्ति के साथ खिलवाड़ करेगे तो वो झटका मारेगी ही । परन्तु यदि नियन्त्रित कर लिया जाए तो वह वरदान बन जाती है । यह बात वासना एवं ब्रह्मचर्य के विषय में सही बैठती है । ऐसी ही खोज हमारे पूर्वजों ने की है । जिस के चलते आज हम बहूत ही सुकून की जीवन जीते है ।
यद्यपि भारतीय धर्मग्रन्थों में ब्रह्मचर्य पालन की बड़ी महिमा बखान की गयी है । परंतु अध्यात्म द्वारा नियन्त्रित जीवन में कामेच्छा की उचित भूमिका को अस्वीकार नहीं किया गया है । उसकी उचित माँग स्वीकार की गयी है । किंतु उसे आवश्यकता से अधिक महत्व देने से इंकार किया गया है । जब व्यक्ति आध्यात्मिक परिपक्वता प्राप्त कर लेता है । तब यौन-आकर्षण स्वयं ही विलीन हो जाता है । उसका निग्रह करने के लिए मनुष्य को प्रयत्न नहीं करना पड़ता है । वह पके फल की भाँति झड़ जाता है । इन विषयों में मनुष्य को तब और रूचि नहीं रह जाती है । समस्या केवल तभी होती है जब मनुष्य चाहे सकारात्मक, चाहे नकारात्मक रूप में कामेच्छा में तल्लीन या उससे ग्रस्त होता है ।
दोनों ही परिस्थितियों में मनुष्य यौन चिंतन करता है व ऊर्जा का अपव्यय करता रहता है ।
काम वासना के सन्दर्भ एक महातमा लिखते हैं-
धन की तरह ही इस संसार में एक अनर्गल आकर्षण है - काम वासना का । यह एक ऐसा नशा है जो विचार शक्ति की दिशा को अपने भीतर केन्द्रित करता और उसे असन्तोष की आग में जलाता रहता है । यह प्रवृत्ति एक मानसिक उद्विग्नता के रूप में विचार शक्ति का महत्वपूर्ण भाग ऐसे उलझाए रहती है । जिसमें लाभ कुछ नहीं, हानि अपार है । मानसिक कामुकता के जंजाल में असंख्य व्यक्ति पड़े हुए अपनी चिन्तन क्षमता को बरबाद करते रहते हैं । इसलिए महामना मनुष्य अपनी प्रवृत्ति को इस दिशा में बढ़ने नहीं देते साथ ही दृष्टिशोधन का ध्यान रखते हैं । भिन्न लिंग के प्राणी का सौन्दर्य उन्हें प्रिय तो लगता है पर अवांछनीयता की ओर आकर्षित नहीं करता । अश्लील साहित्य, गन्दी फिल्म, उपन्यास, अर्धनग्न चित्र, फूहह प्रसंगो की चर्चा आदि के द्वारा यह कामुक प्रवृत्ति भड़कती है ।
दुर्भाग्यवश आज नर और नारी घिनौनी हरकतें करके उल्टे-सीधें वस्त्र एवं चाल-चलन अपना कर एक दूसरे के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं । इससे पूरे समाज में स्वास्थ्य का संकट, मर्यादा का संकट उत्पन्न हो गया है ।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
Vegetarian Recipes | |
» | Caribbean Coconut Rice |
» | SARSON KA SAAG |
» | LAUKI KE KOFTE RECIPE |
» | Doi Machch (Sea Food) |
» | STUFFED BHINDI RECIPE |
» | Khoya Paneer |
» | ALOO BADIYAN RASEDAAR RECIPE |
» | Zucchini Bajji |
More |
Upcoming Events | |
» | Pausha Putrada Ekadashi, 10 January 2025, Friday |
» | Shakambari Jayanti, 13 January 2025, Monday |
» | Sakat Chauth Fast, 17 January 2025, Friday |
» | Vasant Panchami, 2 February 2025, Sunday |
» | Ratha Saptami, 4 February 2025, Tuesday |
» | Bhishma Ashtami, 5 February 2025, Wednesday |
More |
Feng Shui items for health | |
Feng shui bagua | |
Power Beads | |
View all |
भूत प्रेत बाधा एवं निवारण | |
Remedy to have own house | |
माईग्रेन दर्द का उपाय | |
मनचाही सफलता के 3 सरल उपाय | |
Result of Sun in Various Houses and Remedies | |
View all Remedies... |
Ganesha Prashnawali |
Ma Durga Prashnawali |
Ram Prashnawali |
Bhairav Prashnawali |
Hanuman Prashnawali |
SaiBaba Prashnawali |
|
|
Dream Analysis | |