भक्त की जैसी भावना होती है, ईश्वर की अनुभूति उसी रुपमें होती है। बस हृदय में निष् ा होना चाहिए, तो भगवान भक्त की पुकार को सुन लेते है।
ईश्वर को गज की पुकार पर उसकी रक्षा के लिए आना पडा। ईश्वर तो सबके हृदय में विराजमान है। बस उसे देखने की दृष्टि चाहिए। यह दृष्टि हमें मन की भावना देती है। आध्यात्मिक वातावरण से विकार दूर होते है और मनुष्य अपने मूल स्वरूप में आ जाता है। इसलिए कथा की निरंतरता बनी रहनी चाहिए।