यू तो परमात्मा प्रत्येक युग में दुष्टों का दलन एवं धर्म स्थापना के लिए अवतार लते हैं और भक्तों का उद्धार करते हैं। त्रेता युग में प्रभु श्रीराम जी भक्तों की प्रेम पाश के कारण चौदह वर्ष के वनवास को आए थे। जो भक्त अपने प्रत्येक कर्म में, प्रत्येक श्वांस में तथा प्रार्थना के हर फूल में प्रभु की याचना करता है प्रभु भी उसके पास आए बिना नहीं रह पाते। लेकिन आज के समाज में भौतिक वस्तुओं की मांग तो हर और दृष्यमान है, लेकिन परमात्मा की नहीं।
आज भ्रष्टाचार, गरीबी, चोरबाजारी में हम चरमोत्कर्ष पर हैं। इन सभी का कारण खोजने पर हमें आधार से विलगता ही दिखाई देगी। जैसे वृक्ष जड के बिना सूख जाता है वैसे ही अर्वाचीन मानव का जीवन भी अध्यात्म के बिना दुखी है। इसलिए यह अति आवश्यक है कि उसके जीवन में परमात्मा की अनुभूति हो तथा वह अध्यात्म के राजमार्ग पर चलता हुआ परम आनंद को प्राप्त करे।