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भगवत भक्ति सेवा भाव होना चाहिए सांसारिक रिश्तों का लक्ष्य
दुनिया के सभी रिश्ते नाते केवल तभी तक महत्वपूर्ण है जब तक वो व्यक्ति को भगवान् श्री कृष्ण जी की भक्ति में लेकर जाएं एवं श्री कृष्ण के लिए समर्पित हो जाने में सहायक हों। जो सबंध व्यक्ति को भगवान् से जोड़े, सत्य, अहिंसा, मानव कल्याण जैसे सही रास्तों पर आगे चलने के लिए प्रेरित करते हुए भगवत प्राप्ति की ओर लेकर जाए केवल वही उपयोगी है। वरना सांसारिक मोह, माया और निजी स्वार्थों के लिए बने ये सम्बन्ध अंततः केवल परेशानी, दुःख, संताप की ही वजह बनंगे।
रिश्ता पति और पत्नी का हो, गुरु और शिष्य का हो या फिर दोस्ती का हो, लेकिन जब इन सब घनिष्ठ रिश्तों का आधार भगवत सेवा के बजाय एक दूसरे का शोषण और निजी स्वार्थ हो जाता है तो कुछ ही समय पश्चात इसका दुष्परिणाम कलह, कलेश और विवादों के रूप में सामने आने लगता है।
आजकल यदि सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो वैवाहिक जीवन में तलाकों की संख्या में पहले की अपेक्षा काफी अधिक वृद्धि हो रही हैं जिसका प्रमुख कारण रिश्तों में समर्पण, त्याग और प्रेम के बजाय स्वार्थ और लालच की बढ़ोतरी है।
दोस्ती जैसे मजबूत रिश्तों में भी आजकल खूब स्वार्थ और धोखेबाजी देखने को मिलती है। गुरु शिष्य का पवित्र रिश्ता तो समर्पण के भाव से ही जन्म लेता था। जिसमें गुरु भी तटस्थ और निष्पक्ष होकर अपने शिष्य के हित में निर्णय लेता था जिसे शिष्य पूर्ण समर्पण से स्वीकार करते हुए पूरा करता था। किन्तु आजकल इस रिश्ते से वैचारिक, आध्यात्मिक और मानव मूल्यों का ज्ञान तो मानो समाप्त हो चुका है। गुरु आज केवल भौतिक जीवन का ही ज्ञान देता है जिसमें शिष्य के हित की अपेक्षा उसका निजी स्वार्थ अधिक हो गया है, और शिष्य के लिए गुरु धन देकर शिक्षा लेने का एक माध्यम ये रिश्ता तो अब पूरी तरह व्यापार हो चुका है। भौतिक समृद्धि को जीवन लक्ष्य मान लेने वाली ये शिक्षा भगवत प्राप्ति के मार्ग में बाधक बनने लगती है यही वजह है कि आज मानव संवेदना हीन और बहुत अधिक स्वार्थी हो गया है।
संसार में आज केवल स्वार्थ, शोषण, छल, कपट जैसे दुर्गुणों की भरमार है। शोषण, लालच और स्वार्थ को आधार बनाकर बनने वाले इन संबंधों का बहुत अधिक समय तक चल पाना संभव ही नहीं हैं। भारतीय सभ्यता में त्याग को ही श्रेष्ठ बताया गया था ताकि विषय और वासनाओं पर विजय प्राप्त की जा सके मानव इन्द्रिय जनित सुख और भोग कभी भी पूर्ण नहीं होते है। आज मनुष्य में बढ़ चुकी भारी असंतुष्टि की मूल वजह भौतिक विषयों के भोग, छल कपट, वासना नहीं बल्कि भगवान् की भक्ति और सेवा से व्यक्ति का विमुख हो जाना है।
आज मानव भोग, विलासिता, के लिए अमानवीय कृत्य करने से भी पीछे नहीं हटता। लोभ, लालच, स्वार्थ और मोह जाल में फंसा मनुष्य अपनी सोच, विचार और संवेदन शक्ति को बिलकुल मिटा चुका है।
आज इस बात की बहुत आवश्यकता है कि पति - पत्नी जैसे पवित्र और मजबूत रिश्तों को श्री कृष्ण जी भगवान् की सेवा-भक्ति को जीवन लक्ष्य बनाना चाहिए तभी मनुष्य का जीवन सुखमय हो सकता है सफल हो सकता है।
Posted Comments |
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जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
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"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
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"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
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"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
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""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
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"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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