श्रद्धाहीनमनुष्य भगवान की भक्ति को नहीं पा सकते हैं। राम नाम जपने वाले का त्रिकाल में नाश नहीं होता, जिस प्रकार मानसरोवर झील में हंस और बगुला दोनों पक्षी एक साथ रहते हैं। दोनों का रंग व रूप एक है। दोनों के गुणों में बडा अंतर है। बगुले तो मछलियां ढूंढते हैं। उनका आहार यही है, परंतु हंस मोती चुग-चुग कर खाते हैं। इसी प्रकार मनमति मनुष्य बगुलों के समान संसार की गंदगी में फंसे रहते हैं। दूसरे जो संतों के उपदेश सुनते हैं, वे हंसों के समान राम नाम के मोती चुग-चुग कर खाते हैं।
संतपथ पर चलने वाले मनुष्य को कोई हानि नहीं होती। मन मति त्याग कर गुरुमति को ह्दय में बसाना चाहिए। संकट के समय परमात्मा का नाम व संत के वचन ही मनुष्य के काम आते हैं। राम नाम जपने से मन मंदिर के पट खुल जाते हैं। भक्ति पथ में गुरु का सहारा राम दरबार तक ले जाता है।