भगवान शिव अपने मस्तक पर चंद्रमा धारण करते हैं इसलिए उन्हें शशिधर भी कहा जाता है. भगवान शिव अर्धचन्द्र को आभूषण की तरह अपनी जटा के एक हिस्से में धारण करते है। इसलिए उन्हें चंद्रशेखर या सोम कहा गया है| वास्तव में अर्धचन्द्र अपने पांचवें दिन के चरण में चंद्रमा बनता है और समय के चक्र के निर्माण में शुरू से अंत तक विकसित रहने का प्रतीक है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्र का होना समय को नियंत्रण करने का प्रतीक है क्योंकि चन्द्र समय को बताने का एक माध्यम है|
शिव पुराण में वर्णित पहली पौराणिक कथा के अनुसार धरती के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने लीला रची और उन्होंने देव तथा उनके भाई असुरों की शक्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया।
समुद्र
मंथन
कराने
के
लिए
पहले
कारण
निर्मित
किया
गया।
दुर्वासा
ऋषि
ने
अपना
अपमान
होने
के
कारण
देवराज
इन्द्र
को श्री (लक्ष्मी)
से
हीन
हो
जाने
का
शाप
दे
दिया।
भगवान
विष्णु
ने
इंद्र
को
शाप
मुक्ति
के
लिए
असुरों
के
साथ समुद्र
मंथन के
लिए
कहा
और
दैत्यों
को
अमृत
का
लालच
दिया।
इस
तरह
हुआ
समुद्र
मंथन।
यह
समुद्र
था
क्षीर
सागर
जिसे
आज
हिन्द
महासागर
कहते
हैं।
जब
देवताओं
तथा
असुरों
ने
समुद्र
मंथन
आरंभ
किया,
तब
भगवान
विष्णु
ने
कच्छप
बनकर
मंथन
में
भाग
लिया।
वे
समुद्र
के
बीचोबीच
में
वे
स्थिर
रहे
और
उनके
ऊपर
रखा
गया
मदरांचल
पर्वत।
फिर
वासुकी
नाग
को
रस्सी
बानाकर
एक
ओर
से
देवता
और
दूसरी
ओर
से
दैत्यों
ने
समुद्र
का
मंथन
करना
शुरू
कर
दिया।
क्षीर
सागर
में
इस
अमृत
मंथन
के
दौरान
सागर
से
सिर्फ
अमृत
का
प्याला
ही
नहीं
बल्कि
और
भी
बहुत
सी
चीजें
निकली
थीं,
जिनका
वितरण
देवताओं
और
असुरों
में
बराबर
रूप
से
किया
गया
था।
समुद्र मंथन से अमृत के अलावा धन्वन्तरी, कल्पवृक्ष, कौस्तुभ मणि, दिव्य शंख, वारुणी या मदिरा, पारिजात वृक्ष, चंद्रमा, अप्सराएं, उचौ:श्राव अश्व, हलाहल या विष और कामधेनु गाय भी प्राप्त हुई थी. लेकिन अमृतपान के लिए देवता और असुरों में युद्ध हुआ था. भगवान् विष्णु की मदद से देवताओं ने यह युद्ध जीत लिया और अंततः देवताओं को अमृत की प्राप्ति हो पाई थी.
जब समुद्र मंथन किया गया था तो उसमें से हलाहल विष भी निकला था। जिससे पूरी सृष्टि की रक्षा के लिए स्वयं भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले उस विष का पान किया। मगर विष पीने के बाद उनका शरीर विष के प्रभाव से अत्यधिक गर्म होने लगा। आज आसमान में हम जो चंद्रमा देखते हैं वह समुद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हुआ था। यह देखकर चंद्रमा ने उनसे प्रार्थना की वह उन्हें माथे पर धारण कर अपने शरीर को शीतलता प्रदान करें। ऐसे विष का प्रभाव भी कुछ कम हो जाएगा।
इसके लिए पहले तो शिव नहीं मानें, क्योंकि चंद्रमा श्वेत और शीतल होने के कारण उस विष की तीव्रता सहन नहीं कर पाते। लेकिन अन्य देवताओं के निवेदन के बाद शिव इसके लिए मान गए और उन्होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। ऐसी लोकमान्यता है कि तभी से चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजित हैं और पूरी सृष्टि को अपनी शीतलता प्रदान कर रहे हैं। हालांकि इससे जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा भी है। जिसके अनुसार, चंद्रमा को पुनः जीवित करने के लिए शिवजी ने अपने मस्तक पर उन्हें धारित किया।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार, चंद्रमा का विवाह दक्ष प्रजापति की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ, जिसमें रोहिणी उनके सबसे समीप थीं। यह देख अन्य कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दुख प्रकट किया तो स्वभाव से बेहद क्रोधी राजा दक्ष ने चंद्रमा को शाप दे दिया। जिसके बाद क्षय रोग से ग्रस्त होने के कारण धीरे-धीरे चंद्रमा की कलाएं क्षीण होती गईं। फिर नारदजी ने उन्हें भगवान शिव की आराधना करने को कहा, तो भोलेभंडारी ने प्रदोष काल में चंद्रमा को पुनः जीवित होने का वरदान दिया। जिससे चंद्रमा मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए और फिर धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्रमा के रूप में प्रकट हुए। इस तरह चंद्रमा को अपने सभी कष्टों से भगवान शिव की कृपा से मुक्ति मिली।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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