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भय होना क्यों जरुरी है

 
प्रकृति ने सभी जीवआत्माओं में कुछ मात्रा में भय जन्मजात ही दिया है। यह भय जीवन को सुरक्षित व बचाकर रखता है। भोजन में जैसे नमक होता है, उसी प्रकार मनुष्यों को न्यायोचित होने के लिए थोड़े से भय की आवश्यकता होती है। दूसरों की क्षति होने का भय तुम्हें और अधिक सचेत करता है। असफलता का भय तुम्हें और अधिक प्रखर और क्रियाशील बनाता है। भय तुम्हें लापरवाही एवं असावधानी से सावधानी की ओर ले जाता है। भय तुम्हें असंवेदनशीलता से संवेदनशीलता की ओर ले जाता है। भय तुम्हें नीरसता से सजगता की ओर ले जाता है। बिल्कुल भी भय न होने की स्थिति में तुम हानिकारक प्रवृतियों की ओर अग्रसर हो सकते हो। विकृत अंहकार भय को नहीं जानता। विस्तृत चेतना वाला व्यक्ति भी भय को नहीं जानता। अंहकार भय को नकार कर हानिकारक दिशा में जाने लगता है। एक ज्ञानी व्यक्ति इस भय को पहचानता है और ईश्वर की शरण में जाता है। जब तुम प्रेममय होते हो और जब तुम समर्पित होते हो भय नहीं होता। अंहकारी भी भय को नहीं जानता। परंतु इन दोनों निर्भीक स्थितियों में वैसी ही भिन्नता, जैसे पृथ्वी और स्वर्ग में। भय तुम्हें न्यायनिष्ट बनाता है, भय तुम्हें समर्पण के करीब ले जाता है, भय तुम्हें तुम्हारे पथ पर रखता है, भय तुम्हें विनाशकारी होने से रोकता है। शांति के नियम इस पृथ्वी पर भय के कारण ही कायम है। एक नवजात शिशु भय नहीं जानता - वह पूर्णतः अपनी माता पर निर्भर है।
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