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भरत ने रोका था माताओं को सती होने से

 

धर्म वही है जो समाज को धारण करे, धर्म वहीं जिसके आधार पर समाज चलता है। धर्म वही जो समाज व्यवस्था प्रदान करे। धर्म जो समाज के सभी लोगों के बीच समानता, समरसता लाए। ऐसा ही समाज रामराज था। जिसको सबसे अच्छी तरह से भरत जी ने समझा था। राजा दशरथ की मृत्यु के बाद जब तीनों रानी कौशल्या,कैकेयीव सुमित्रा सती होने के लिये एक साथ चलीं तब भरत ने विभिन्न तर्कोके आधार पर उन्हें सती होने से रोका था। माता कौशल्याका भरत ने पैर पकड लिया और रोते हुए कहा कि पिता की मृत्यु और भाई के वन गमन सब मेरे कारण हुआ है। अगर आप सती हो गईं तो तो मैं किसके सहारे और कैसे जिंदा रहूंगा। इसलिये मेरे कलंक को और न बढाओ माता। थोडा धैर्य धरो, मैं भैया राम व लक्ष्मण को मनाकर वापस लेकर आऊंगा। माता सुमित्रा के भी चरण पकड करूणस्वर में उन्हें भी सती होने से रोक लिया। जबकि माता कैकेयीसे कहा सती होकर क्या पूजा करवाना चाहती हो, क्या समाज की भ?र्त्सनासे डर कर सती हो रही हैं। अगर जलना है तो स्थूल अग्नि की बजाय पश्चाताप की अग्नि में जलो यही आपके लिये सही मायने में प्रायश्चित है। भगवान राम को अगर किसी ने सही व सच्चे मायने में समझा तो वो भरत ही थे। जब उनसे राज सिंहासन पर बै ने व राज्य की बागडोर संभालने को कहा तो वे भाव विह्ववलहो गये उनकी आंखों से अश्रुधाराबह निकली। बाद में उन्होंने 14साल तक राज्य का कार्यभार संभाला लेकिन भ्राता राम की चरण पादुका को राजसिंहासन पर रखकर।

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