जहां कहीं परमात्मा की किरण उतरी हो , उस किरण से मैत्री करो । उस किरण से नाता जोड़ो , संबंध जोड़ो ? सिर्फ दीये की बातचीत ही करते रहोगे तो दीया कभी न जलेगा । अंधेरा जैसा है वैसा ही बना रहेगा । और मजा यह है , जिसके भीतर का दीया जल जाता है उसके बाहर दान प्रकट होता है । जिसके भीतर रोशनी होती है , वह बाहर रोशनी बांटने लगता है , करेगा क्या ? परमात्मा उसे देता है , वह औरों को देता है । जितना देता है उतना भीतर की संपदा बढ़ती है । जितना बांटता है उतना साम्राज्य बड़ा होता है । और फिर दीया जल जाए तो भीतर सब दिखाई पड़ने लगता है । जैसा है , वैसा ही दिखाई पड़ने लगता है । फिर राम-नाम सत्य है , फिर जीते-जी राम-नाम....!!