एक भ्रमर सायंकाल के समय एक कमल पर बै कर उसका रस पी रहा था l इतने में सूर्यास्त होने को आ गया l सूर्यास्त होने पर कमल सकुचित हो जाता है l अत: कमल बंद होने लगा, पर रसलोभी मधुप विचार करने लगा - अभी क्या जल्दी है, रात भर आनन्द से रसपान करते रहें - "रात बीतेगी l सुन्दर प्रभात होगा l सूर्यदेव उदित होंगे l उनकी किरणों से कमल पुन: खिल उ ेगा, तब मैं बाहर निकल जाऊँगा l " वह भ्रमर इस प्रकार विचार कर ही रहा था कि हाय ! एक जंगली ह ी ने आकर कमल को डंडी समेत उखाड़कर दांतों में दबाकर पीस डाला l यों उस कमल के साथ भ्रमर भी हाथी का ग्रास बन गया l इस प्रकार पता नहीं, कालरूपी हाथी कब हमारा ग्रास कर जाये l मृत्यु आने पर एक श्वास भी अधिक नहीं मिलेगा l मृत्युकाल आने पर एक क्षण के लिए भी कोई जीवित नहीं रह सकता l उस समय कोई कहे कि "मैंने वसीयतनामा ( Will ) बनाया है l कागज़ ( Documentary ) तैयार है l केवल हस्ताक्षर करने बाकि हैं l एक श्वास से अधिक मिल जाय तो मैं सही कर दूँ l " पर काल यह सब नहीं सुनता l बाध्य होकर मरना ही पड़ता है l यह है हमारे जीवन कि स्थिति l अतएव मानव-जीवन कि सफलता के लिए संसार के पदार्थों से ममता उ ाकर भगवान् में ममता करनी चाहिए l