मनुष्य आज शांति की तलाश में मनुष्य के बनाए मंदिर में तो जाता है, परंतु परमात्मा के बनाए मंदिर में नहीं जाना चाहता। ईश्वर का बनाया मंदिर मानव शरीर वास्तव में सच्चा मंदिर है। इस मंदिर का मार्ग सच्चा गुरु ही बता सकता है।
गुरु मनुष्य की जटिलता को तोडकर उसे सरल बनाता है, ताकि वह आसानी से अहंकार रहित होकर स्वयं के स्वरूप का अनुभव कर सके। एक बार उसे मनुष्य की झलक मिल गई तो वह मस्त हो जाता है। उसका किसी से बैर नहीं रहता।
वह भेदभाव की दीवार को तोड देता है। वह प्रेममय हो जाता है। यह कार्य गुरु की मदद से ही संभव है। जो जन्मजात जातिभेद, पाखंड, नशे व नकारात्मक सोच का त्याग कर सके। गुरु गृहस्थ का विरोध नहीं करता। वह दान का एक भी पैसा अपने ऊपर नहीं लगाता है, बल्कि अपनी कमाई का कुछ हिस्सा धर्म में खर्च करता है। गुरु हमें अंत: उपासना की बारीकियां सिखाता है। धर्म का मार्ग महिलाओं के लिए आसान होता है।