जब मीरा बाई को राणा ने विष दिया और उसके बाद राणा की कसौटी में विजयी होने के बाद, मीराबाई ने द्वारिका जाने का निश्चय किया, फिर वो तो संत थी, ओर राजघराना से संबंधित होने के बावजूद भी उसने पैदल ही द्वारिका जाने लगी, ओर रास्ते मे आते हुवे कई गांवों में कृष्णभक्ति का सत्संग ओर परचे दिखाते हुवे, मोरबी के इस गांव के राजा की महारानी के आग्रह पर यहाँ पे सत्संग करने आई और कुछ एक रात रुकी थी, - उस दौरान महारानी के साथ बातचीत के दौरान महारानी ने अपने राजा को कोई अंदरूनी बीमारी के इलाज के बारे में चर्चा की, तब मीराबाई ने कहाँ में आज रात मेरे कनैया को आपके राजा की बीमारी के लिए सत्संग एवं भजन कीर्तन का कार्यक्रम करूंगी ओर आपभी मेरे साथ मेरे इस कृष्ण के विग्रह के सामने रहकर आपका योगदान करेगी, महारानी ने तुरंत ही कार्यक्रम का प्रबंध किया, - गांव के बड़े बुजुर्गों की बातों के आधार पर, कहते है, उस महारानी ने अपने पति की बीमारी के इलाज के लिए मीराबाई के साथ पूरी रात उस विग्रह जो मीराबाई अपने पास कायम रखती थी, उसके सामने दोनों ने मिलकर नृत्य किया, ओर ऐसा नृत्य जाने कोई स्वर्ग की अप्सराए करती ऐसा ओर साथ मे कृष्ण की एक से बढ़कर एक भजन ओर सत्संग,
जब सुबह हुई महारानी को नृत्य करते करते बेहोस हो गई थी, - मीराबाई ने उठाया और जाने की तैयारी की बाते की तब महारानी ने मीराबाई से अपने महाराज समेत आशीर्वाद देने को कहा, ओर मीरा बाई ने उन दोनों को आशिर्बाद दिया और जैसे ही मीराबाई ने अपना हाथ आशीर्वाद देने के लिए उठाया, ओर महाराज की बीमारी एकदम से गायब ,
ओर इस चमत्कार के बाद , महारानी ने मीरा बाई से फिर से मिलने का वचन मांगा, लेकिन मीराबाई ने मना करते हुवे कहाँ की मेरे लिए यह असंभव है, तब महारानी ने चतुराई पूर्वक मीराबाई को अपनी निशानी स्वरूप, कृष्णविग्रह उनके महल में स्थापित करने के लिए कहा,
उस वक्त मीराबाई ने उनको कहाँ मेरा पूर्ण जीवन इस विग्रह के साथ ही गुजरा है, - अतः इसमे मेरे प्राण है, इसे आपको मेरी तरह ही सेवित करना पड़ेगा तब ही वो यहाँ रहेगा, अन्यथा ये मेरे पास अपने आप वापिस आ जायेगा, तब महाराज ओर महारानी ने उसकी पूर्णरूप जवाबदारी स्वीकारी ओर कहाँ, आपके साथ की कृष्ण भक्ति की एक रात की जुगलबंदी से हमारा जीवन और यह शरीर भी पावन हो गया है, अब हम यहाँ के राजा और रानी नही बल्की आपके इस विग्रह के सेवक बनकर - हमारी प्रजा को भी कृष्ण भक्ति में जोड़कर रहेंगे,
तब मीरा बाई ने उस विग्रह की वहाँ स्थापना की, वो आज भी मौजूद है, ओर पूर्णतम काष्ठ निर्मित विग्रह, इतने सालों के बाद भी उसका ऊपरी रंग भी वैसे का वैसा ही है, जैसे पहले था,