मानव का परम लक्ष्य मुक्ति प्राप्त करना है। मुक्ति ही मनुष्य के दुखों का अंतिम उपाय है। मुक्ति प्राप्ति जन्म-जन्मांतर के शुभ कर्मो का फल होता है। उसके लिए मनुष्यों को योग मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।
मनुष्य भूलवश इंद्रियों के संघात शरीर को ही जीवन का परम लक्ष्य मान बै ा है। इंद्रियों की भोग शक्ति को बढाने के कृत्रिम साधन तलाशता रहता है। जीवन के चरम लक्ष्य को भूलकर भौतिक पदार्थो के संग्रह में लगा रहता है।
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि का यत्न करने से मनुष्य जीवन सफल होगा।