एक दिन की बात है, राम दरबार सजा हुआ था.
हनुमान जी हमेशा की तरह अपने प्रभु राम की सेवा में तल्लीन थे कि इतने में गुरु वशिष्ठ का राम दरबार में आगमन हुआ.
श्री राम समेत सभी लोगों ने अपने स्थान से उठ कर गुरु वशिष्ठ को प्रणाम किया लेकिन हनुमान जी प्रभु राम की सेवा में इतने मगन थे कि उन्हें गुरु वशिष्ठ को प्रणाम करना याद न रहा.
गुरु वशिष्ठ ने इस ओर प्रभु राम का ध्यान दिलवाया और उनसे पूछा कि क्या यह उनके गुरु का अपमान नहीं था कि हनुमान ने उन्हें प्रणाम करना भी उचित नहीं जाना.
प्रभु राम ने माना कि यह गुरु का अपमान था.
इस पर गुरु वशिष्ठ ने राम से पूछा कि गुरु का अपमान करने वाले को क्या सज़ा मिलनी चाहिए?
प्रभु राम ने कहा कि गुरु वशिष्ठ का अपमान करने वाले की सज़ा मृत्यु होनी चाहिए.
गुरु वशिष्ठ ने पूछा कि क्या प्रभु राम अपने अत्यंत प्रिय हनुमान को मृत्यु दंड देंगे?
श्री राम ने उसी समय वचन दिया कि वे अगले दिन अपने अमोघ बाण से हनुमान को मृत्यु दंड देंगे.
सारी सभा हैरान रह गई.
हनुमान जी घर लौटे तो उनके मुख पर उदासी छाई थी. माता अंजनी के पूछने पर उन्होंने माता को सारी बात बताई. माता अंजनी ने कहा कि पुत्र चिंता मत करो मुझे राम नाम का मंत्र मिला हुआ है और वही मंत्र मैंने तुम्हें अपनी घुट्टी में दिया हुआ है. इस मंत्र की ऐसी महिमा है कि स्वयं श्री राम भी चाहें तो इस मंत्र का जप करने वाले का वध नहीं कर सकते. माता ने हनुमान को निश्चिंत रहने को कहा.
अगले दिन श्री राम ने अपनी अमोघ शक्ति से युक्त बाण हनुमान पर छोड़ा मगर उसका हनुमान पर कोई असर नहीं हुआ. बार बार चलाए गए सब बाण व्यर्थ गए.
गुरु वशिष्ठ ने राम से कहा कि वे जानबूझ कर अपने प्रिय हनुमान को नहीं मार रहे थे.
तब श्री राम ने कहा कि हनुमान पर जब वो अपना अमोघ बाण छोड़ते हैं तो हनुमान राम नाम के मंत्र के जप में लगे होते हैं इसलिए बाण का कोई असर नहीं होता क्योंकि इस शरीर धारी राम से कहीं बड़ा राम का नाम है.
इतनी बात सुन कर गुरु वशिष्ठ प्रभु राम से बोले कि हे राम अब मैं सब कुछ त्याग कर अपने आश्रम को जा रहा हूँ और वहाँ रह कर राम नाम का जाप करूँगा.