माँ बाजार में बहुत मिल जायेगी परँतु वो ममता वाली माँ नहीं मिलती खासतौर पर लड़कियों को। जब माँ होती है तो उसके होने का एहसास नहीं होता परंतु जब नहीं होती तब मालूम चलता है की माँ क्या होती है? एक ऐसी ही किसी स्त्री की मार्मिक कहानी है यह |
बचपन में खाना मनपसंद न हो तो मां दस और ऑप्शन देती।
अच्छा घी-गुड़ रोटी खा लो,
अच्छा आलू की भुजिया बना देती हूं।
मां नखरे सहती थी, इसलिए उनसे लडियाते भी थे। लेकिन बाद में किसी ने इस तरह लाड़ नहीं दिखाया।
मैं भी अपने आप सारी सब्जियां खाने लगीं।
मेरी जिंदगी में मां सिर्फ एक ही है। दोबारा कभी कोई मां नहीं आई,
हालांकि बड़ी होकर मैं जरूर मां बन गई।
पति कब छोटा बच्चा हो जाता है,
कब उस पर मुहब्बत से ज्यादा दुलार बरसने लगता है,... पता ही नहीं चलता। उनके सिर में तेल भी लग जाता है, ये परवाह भी होने लगती है कि उसका पसंदीदा (फेवरेट ) खाना बनाऊं, उसके नखरे भी उठाए जाने लगते हैं।
लड़कों की जिंदगी में कई माएं आती हैं। बहन भी मां हो जाती है,
पत्नी तो होती ही है,
बेटियां भी एक उम्र के बाद बूढ़े पिता की मां ही बन जाती हैं,
लेकिन लड़कियों के पास सिर्फ एक ही मां है।
बड़े होने के बाद उसे दोबारा कोई मां नहीं मिलती। वो लाड़- दुलार, नखरे, दोबारा कभी नहीं आते।
लड़कियों को जिंदगी में सिर्फ एक ही बार मिलती है...मां..........माँ ...जो अब नहीं है....और ना ही किसी बाजार में मिलेंगी....माँ |