शब्द ....आदि ऐंद्रिक विषयों के प्रति राग के अभाव से और आत्मा की अदृश्यता से जिसका मन विक्षेपों से मुक्त होकर एकाग्र हो गया—ऐसा ही मैं स्थित हूं।
प्रीत्यभावेन शब्दादेरदृश्यत्वेन चात्यन:
विक्षेपैकाग्रहृदय एवमेवाहमास्थित।।
शब्दादे प्रीत्यभावेन ।
शब्द आदि के प्रति जो प्रेम है, भाव है, उससे मैं मुक्त हो गया हूं।
शब्द में बड़ा रस है।
शब्द का अपना संगीत है।
शब्द का अपना सौंदर्य है।
शब्द के सौंदर्य से ही तो काव्य का जन्म होता है।
शब्द में जो बहता हुआ रस है, उसको ही एक श्रृंखला में बांध लेने का नाम ही तो कविता है।
शब्द को अगर तुम गुनगुनाओ—तो मीठे शब्द हैं,
कड़वे शब्द हैं, सुंदर शब्द हैं, असुंदर शब्द हैं।
कोई तुम्हें गाली दे जाता है,
वह भी उसी वर्णमाला से बने अक्षरों का उपयोग कर रहा है।
कोई तुमसे कह जाता है, मुझे तुमसे बड़ा प्रेम है, कोई धन्यवाद दे जाता है।
इन सभी में एक ही वर्णमाला है—
कोई गाली दे कि कोई तुम्हारी प्रशंसा करे।
लेकिन कुछ शब्द हृदय पर अमृत की वर्षा कर देते हैं,
कुछ शब्द काटे चुभा जाते हैं, कुछ घाव बना जाते हैं।
शब्द की बड़ी पकड़ है, बड़ी जकड़ है आदमी के मन पर।
हम शब्द से ही जीते हैं।
तुम अगर गौर करो, किसी ने कहा, मुझे तुमसे बड़ा प्रेम है;
तुम कैसे प्रफुल्लित हो जाते हो!
और किसी ने हिकारत से कुछ बात कही,
अपमान किया—तो तुम कैसे दुखी हो जाते हो!
शब्द सिर्फ तरंग है;
इतना महत्वपूर्ण होना नहीं चाहिए,
लेकिन बड़ा महत्वपूर्ण है।
किसी ने गाली दी हो बीस साल पहले, लेकिन भूलती नहीं;
चोट कर गई है, बैठ गई है भीतर,
बदला लेने के लिए अभी भी आतुर हो।
और किसी ने पचास साल पहले तुम्हारी बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की हो,
अब भी तुम सर्टिफिकेट रखे बैठे हो।
जिसने तुम्हें बुद्धिमान कहा हो,
वह बुद्धिमान खुद भी चाहे न रहा हो,
मगर उसकी कौन चिंता करता है!
हम शब्द बटोरते हैं, हम शब्द से जीते हैं!
जनक ने कहा. शब्दादे: प्रीत्यभावेन—
शब्द के प्रति वह जो मेरा राग है, वह मेरा गया।
क्योंकि मैंने देख लिया, मैं शब्दातीत हूं!
मैं शब्द के पीछे खड़ा हूं।
शब्द तो ऐसे ही हैं जैसे हवा के झकोरे पानी में लहरें उठा जाते हैं।
शब्द तो तरंग मात्र हैं, न अच्छे हैं न बुरे हैं।
इसलिए अगर कोई दूसरा व्यक्ति किसी दूसरी भाषा में तुम्हें कुछ कहे,
तो कुछ परिणाम नहीं होता—चाहे वह गालियां ही दे रहा हो।
भाषा समझ में न आए तो फिर मनगढ़ंत है सब हिसाब।
जब तक समझ में आता है, तब तक अच्छा शब्द, बुरा शब्द;
जब समझ में नहीं आता तो सभी शब्द बराबर हैं, कोई अर्थ नहीं है।
अर्थ नहीं है शब्दों में—अर्थ माना हुआ है।
शब्द तो केवल ध्वनियां हैं—अर्थहीन।
जिस दिन यह समझ में आ जाता है कि शब्द तो केवल ध्वनियां हैं अर्थहीन, उस दिन— जीवन में एक बड़ी अभूतपूर्व घटना घटती है।
तुम शब्द से मुक्त होते हो, तो तुम समाज से भी मुक्त हो जाते हो।
क्योंकि समाज
यानी शब्द।
बिना शब्द के कोई समाज नहीं है।
इसलिए तो जानवरों का कोई समाज नहीं होता,
आदमियों का समाज होता है।
समाज के लिए भाषा चाहिए।
दो को जोड्ने के लिए भाषा चाहिए।
अगर दो के बीच भाषा न हो तो जोड़ नहीं पैदा होता।
तो भाषा समाज को बनाती है। भाषा आधार है ।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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