शुक्राचार्य का नाम तो सबने सुना ही होगा, इतना सबको पता है की वो दैत्यों और राक्षसो के गुरु थे लेकिन ये कोई नही जानता होगा की वो कौन थे कहाँ से आये थे।
आपको बताते है उनके ऋषि से दैत्यगुरु होने की कथा।
नवग्रहों में शुमार शुक्र ही शुक्राचार्य है, शुक्राचार्य ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ भृगु ऋषि के पुत्र है भृगुऋषि जिन्हे धरती के सब ऋषियों ने तीनो देवो (ब्रह्मा विष्णु महेश) में कौन सर्वश्रेष्ठ है जांचने की जिम्मेदारी दी थी, ऐसे प्रतापी ऋषि का पुत्र होके भी शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु कैसे बन गए?
बात बहुत पुरानी है भृगु ऋषि की दो पत्निया थी पहली दक्ष की कन्या थी और दूसरी थी ख्याति जिनसे उन्हें पुत्र मिला शुक्राचार्य, शुक्रवार को जन्मे थे भृगु इसलिए उनके नाम पे ही शुक्र का नाम शुक्रवार पड़ा, पिता ने उन्हें ब्रह्मऋषि अंगरीशी के पास शिक्षा के लिए भेजा।
अंगरीशी ब्रह्मा के मानस पुत्रो में सर्वश्रेष्ठ थे, शुक्राचार्य के साथ उनके पुत्र बृहस्पति (जो बाद में देवो के गुरु बने) भी पढ़ते थे. शुक्राचार्य बृहस्पति की तुलना में काफी होशियार थे, लेकिन फिर भी बृहस्पति को पुत्र होने के चलते ज्यादा अच्छी तरह से शिक्षा नही मिली।
ईर्ष्यावश वो वंहा से दीक्षा छोड़ के सनक ऋषियों और गौतम ऋषि से शिक्षा लेने लगे | इस दौरान उन्हें प्रेरणा मिली और जब बृहस्पति देवो के गुरु बने तो ईर्ष्यावष वो दैत्यों के गुरु बने | दैत्य देवो से नित हारते थे इसलिए उन्होंने (शुक्राचार्य) शिव को प्रसन्न कर संजीवनी मन्त्र (मरे हुए को जीवित करने का मन्त्र) हेतु तपस्या में बैठ गए।
लेकिन देवो ने मौके का फायदा उठा के दैत्यों का संघार आरम्भ कर दिया, शुक्राचार्य को तपस्या में जान दैत्य उनकी माता ख्याति की शरण में चले गए| ख्याति ने दैत्यों को शरण दी और जो भी देवता दैत्यों को मारने आता वो उसे मूर्छित कर देती या अपनी शक्ति से लकवाग्रस्त कर देती |
ऐसे में दैत्य बलशाली हो गए और धरती पर पाप बढ़ने लगा, धरती पे धर्म की स्थापना के लिए भगवान विष्णु ने शुक्राचार्य की माँ और भृगु ऋषि की पत्नी ख्याति का सुदर्शन चक्र से सर काट दैत्यों के संघार में देवो की और समूचे जगत की मदद की| इस्पे शुक्राचार्य को बेहद खेद हुआ और वो शिव की तपस्या में और कड़ाई से लग गए।
आखिर कार उन्होंने संजीवनी मन्त्र पाया और दैत्यों के राज्य को पुनः स्थापित कर अपनी माँ का बदला लिया, तब से शुक्राचार्य का भगवान विष्णु से छत्तीस का आंकड़ा हो गया और वो उनके शत्रु बन गए| भृगु ऋषि ने भगवान विष्णु को श्राप दिया की तुम्हे बार बार पृथ्वी में जाके गर्भ में रह कष्ट भोगना पड़ेगा चूँकि उन्होंने एक स्त्री का वध किया|
उससे पहले भगवान प्रकट हो के ही अवतार लेते थे जैसे की वराह, मतस्य, कुर्मा और नरसिंघ लेकिन उसके बाद उन्होंने परशुराम, राम कृष्ण, बुद्ध, रूप में जन्म लिया तो माँ के पेट में कोख में रहने की पीड़ा झेलनी पड़ी थी| बाद में शुक्राचार्य से बृहस्पति के पुत्र ने संजीवन विधा सिख उनका पतन किया।