रुतम्-दुःखम्, द्रावयति-नाशयतीति रुद्रः अर्थात जो सभी प्रकार के रुत दुखों को विनष्ट कर देते हैं वे ही रूद्र हैं।
ईश्वर, शिव, रूद्र, शंकर, महादेव आदि सभी ब्रह्म के ही पर्यायवाची शब्द हैं, ब्रह्म का विग्रह-साकार रूप शिव है इन शिव की शक्ति शिवा हैं, इनमें सतोगुण जगत्पालक विष्णु हैं एवं रजोगुण श्रृष्टिकर्ता ब्रह्मा हैं! श्वास वेद हैं! सूर्य चन्द्र नेत्र हैं! वक्षस्थल तीनों लोक और चौदह भुवन हैं विशाल जटाओं में सभी नदियों, पर्वतों और तीर्थों का वास है, जहां श्रृष्टि के सभी ऋषि, मुनि, योगी आदि तपस्या रत रहते हैं! वेद ब्रह्म के विग्रह रूप अपौरुषेय, अनादि, अजन्मा ईश्वर शिव के श्वाँस से विनिर्गत हुए हैं। इसीलिए वेद मन्त्रों के द्वारा ही शिव का पूजन, अभिषेक, जप, यज्ञ आदि करके प्राणी शिव की कृपा सहजता से प्राप्त कर लेता है।
रुद्राभिषेक करने या वेदपाठी विद्वानों के द्वारा करवाने के पश्च्यात् प्राणी को फिर किसी भी पूजा की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि- ब्रह्मविष्णुमयो रुद्रः, अर्थात ब्रह्मा, विष्णु भी रूद्रमय ही हैं। शिवपुराण के अनुसार वेदों का सारतत्व, रुद्राष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्यायों में कुल १७६ मंत्र हैं, इन्हीं मंत्रो के द्वारा त्रिगुणस्वरुप रूद्र का पूजनाभिषेक किया जाता है शास्त्रों में भी कहा गया है कि शिवः अभिषेक प्रियः, अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है। रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के शिवसंकल्पमस्तु आदि मंत्रों से गणेश का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण विष्णु का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज इंद्र तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान सूर्य का स्तवन है पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में मरुत और आठवें अध्याय में अग्नि का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है।
अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल तत्क्षण मिल जाता है! रुद्राभिषेक में श्रृष्टि की समस्त मनोकामनायें पूर्ण करने की शक्ति है अतः अपनी आवश्यकता अनुसार अलग-अलग पदार्थों से अभिषेक करके प्राणी इच्छित फल प्राप्त कर सकता है इनमें दूध से पुत्र प्राप्ति, गन्ने के रस से यश, उतम पति/पत्नी की प्राप्ति, शहद से कर्ज मुक्ति, कुश एवं जल से रोग मुक्ति, पंचामृत से अष्टलक्ष्मी तथा तीर्थों के जल से मोक्ष की प्राप्ति होती है
सभी बारह ज्योतिर्लिंगों पर अभिषेक करने प्राणी जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर शिव में विलीन हो जाता है! पिता दक्ष प्रजापति के घर शरीर त्यागने के पश्च्यात माता सती ने श्रावण में पुनः तपस्या करके शिव को पति रूप प्राप्त कर लिया था। तभी से शिव को श्रावण का माह अति प्रिय है सम्पूर्ण श्रावण माह शिव पृथ्वी पर वास करते हैं अतः इस महीने में रुद्राभिषेक करने से शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, शिवसंकल्पमस्तु!
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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