कोई भी शुभकार्य अगर सच्चे मन से किया गया हो तो वह कर्म हमेशा सफल होता है। ऐसा वेद-पुराणों में तथा देवताओं ने भी बताया है।
राजा परीक्षित से महíष शुकदेव ने कहा कि अनजाने में किए गए अशुभ कर्म का अगर प्रायश्चित किया जाए तो अशुभ कर्म के फल की प्राप्ति नहीं होती। ऐसे अशुभ कर्म के पाप से भी प्राणी को मुक्ति मिल जाती है, लेकिन अगर कोई प्राणी बार-बार गलती को दोहराता रहे और अशुभ कर्म करता रहे तो उसे परमात्मा भी कभी माफ नहीं करते।
ज्ञान के बिना तो मोक्ष भी प्राप्त नहीं होता, लेकिन कुछ ज्ञानी होते हुए भी अशुभ कार्य व असामाजिक कर्मो में लिप्त हो जाते हैं। बडे ज्ञानी और महापुरुष भी जब गलत मार्ग पर चलते हैं तो बडी गलती ही करते हैं। ऐसा ही अजामिल के साथ हुआ। उन्होंने बताया कि मनुष्य का व्यक्तित्व उसके चरित्र से ही पहचाना जाता है, न कि उसके चर्म या वस्त्रों से।
परमात्मा से मानव को ऐसी कामना करनी चाहिए कि उसकी आंखें ऐसे कर्म देखे तथा उसके कान ऐसे कर्म सुने, जिनसे कल्याण ही हो। प्राणी हमेशा माया के वश में बंधा रहता है और अजामिल की भांति ज्ञानी होते हुए भी दुष्कर्मो के मार्ग पर चल निकलता है। लेकिन भागवत पुराण में कहा गया है कि कोई भी प्राणी कितना भी बडा क्यों न हो और कितना भी बडा दुष्कर्मी या अपराधी क्यों न हो संतों की शरण में आकर वह निर्मल हो जाता है, और सद्मार्ग को प्राप्त करता है।