गोत्र एक संस्कृत शव्द है और गोत्र का संधि विच्छेद करें तो यह गौ+तर- यानी गौ माता के जो सेवा करते है और जो उनके( गौ माता के) च्छात्र छाया में रहते है उसे गोत्र कहते है|
सनातन वैदिक संस्कृति में गौ का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है और यह ऐसे ही गौ माँ सभी हिन्दुओ के नहीं हैं?
इनके बारे में विस्तृत जानकारी ऋग वेद से लेकर अथर वेद, रामायण -महाभारत, पुराण- गीता और महाभरत में भरे पड़े हैं| चुके पुरातन काल में गौ को ही पूजा सेवा दान इत्यादि किया जाता था इसलिए गौ पर ही इनका नाम गोत्र पड़ा है|
सनातन वैदिक धर्म में गोत्र प्रारम्भ ब्राह्मणो से हुआ और बाद में अनेको ऋषि मुनि ब्राह्मण से वो परम्परा प्रारम्भ हुआ? यह पूरी सृष्टि ब्राह्मणो के द्वारा और ब्रह्मिनो को ही दान किया हुआ है? आप सायेद जानते होंगे की कश्यप ऋषि के ही सारे लोग संतान है वो चाहे कोई ब्राह्मण हो या अन्य वर्ण वो सभी उन्ही से चले है, जिनके नाम पर देश का एक प्रान्त जम्मू और कश्मीर कहलाता है| यह पूरी सृष्टि एक समय परशुराम जी ने क्षत्रिये से छीनकर कश्यप ऋषि को दान कर दिया था|
गोत्र सबसे पहला प्रारम्भ ऋषि चवण से हुआ था और यह भृगु के पुत्र थे| चवण ऋषि एक ज्योतिष शस्त्र के प्रकांड पंडित कहलाते हैं| इन्होने जीवन के बहुत से मामलो का हल ज्योतिष शास्त्रों से किया है और आज उन्ही के बताये मार्ग पर ब्राह्मण लोग आज इसके आचार्य कहलाते हैं| ऋषि चवण ब्राह्मण भृगु और पुलोमा के पुत्र थे और इनकी कहानी लम्बी है, इसलिए आप इतना समझिये की गोत्र का प्रारम्भ इन्ही से हुआ और बाद में अनेको ब्राह्मण और ऋषि मुनि के जो संतान हुए उसे उन्ही के संतान कहा जाता है और इस प्रकार का यह एक पहचान है की अमुक व्यक्ति उन ऋषि या ब्राह्मण के संतान है|
श्राद्ध, पितरो को संतुष्ट करने के लिए गोत्र का बतलाना आबशयक होता है और तभी आपके पितरो को जल, अन्न या कुछ जो आप देते है, उन्हें मिलता है? भगवान् ने यह व्यवस्था किया है की अमुक व्यक्तियों के पितरो को मरने के बाद उन्ही ऋषि के नाम लेकर अन्न जाल यदि दिया जाय तो उन्हें तुरंत मिल जाता है अन्यथा वो कहीं नहीं किसी को मिलता? पूजा पाठ और हवन इत्यादि में भी गोत्र का महत्त्व है| क्योंकि गोत्र के बताने पर ही तो आपके पूजा हवन आदि आपके कुल देवताओ, या देवी देवताओ को आपके द्वारा दिया हुआ भाग मिलता है?